*मक़रूज़ का हज को जाना*
⭕आज का सवाल नंबर १०६५⭕
१. क़र्ज़-दार का हज के लिए जाने का क्या हुक्म है..?
और
२. क़र्ज़-दार का नफ्ली हज के लिए जाने का क्या हुक्म है..?
और
३. तिजारती क़र्ज़ों का क्या ऐतबार है..?
🔵अल जवाबात🔵
१. अगर फिलहाल क़र्ज़ मांगने वालों का मुतालबा न हो, और वो बा-ख़ुशी हज के लिए जाने की इजाज़त दें, या क़र्ज़दार अपने क़र्ज़ का किसी को ज़िम्मेदार बना दें, और उस क़र्ज़ ख़्वाहों को इत्मीनान हो जाये और वो इजाज़त दे दें तो वो शख्स हज के लिए जा सकता है, उस शख्स पर जितना क़र्ज़ हो ेअहतियातन उसके बारे में वसिय्यत नामा लिख दें, और वारिसों को ताकीद कर दें के अगर मेरी मौत हो जाये और मेरे ज़िम्मे क़र्ज़ बाक़ी रह जाये तो मेरे तरका [वारसे] में से पहले क़र्ज़ अदा कर दिया जाये, अगर तरके में गुंजाइश न हो तो तुम अपने पास से क़र्ज़ अदा कर देना, या उससे मुआफ करा देना, अगर क़र्ज़ ख़्वाह [क़र्ज़ देने वाले] की इजाज़त के बगैर जायेगा तो मकरूह होगा, अगर चे फ़रीज़ा अदा हो जायेगा,
अगर उसी वक़्त क़र्ज़ अदा करने की गुंजाइश हो तो उसी वक़्त क़र्ज़ अदा कर देना चाहिए, उसकी बहोत ही ज़ियादा ऐहमिययत है,
इंतज़ाम होते हुवे भी क़र्ज़ अदा न करना संगीन गुनाह है, (क़र्ज़ बाक़ी रखकर वहां लम्बीचौड़ी खरीदी करने की इजाज़त क़र्ज़ खाह ने नहीं दी होती है. उस की इजाज़त अलग लें)
हदीस शरीफ में है के : मालदार का टालमटोल [आनाकानी] करना ज़ुल्म है.
२. जो शख्स फ़र्ज़ क़र्ज़ अदा कर चूका हो और नफ्ली हज करने जाना हो तो नफ्ली हज से बेहतर ये है के क़र्ज़ा अदा करे,(इस बारे में भी कोताही हो रही है) और उसके बिल-मुक़ाबिल गरीबी की हालत में जब के बिल-ख़ुसूस दूसरे के हुक़ूक़ अपने ज़िम्मे हो, उनके हुक़ूक़ की अदायगी के एहमियत हज्जे नफ़्ल से कहीं ज़ियादा है.
[फतावा रहीमियाह ८/२८२,
बा हवाला शामी २/२०५, दर्रे मुख़्तार २/१९१]
३. तिजारती क़र्ज़े जो आदतों हमेशा जारी रहते है, इसमें दाखिल नहीं, ऐसे क़र्ज़ों की वजह से हज को मोअख़्ख़र [मुल्तवी, कैंसिल] नहीं किया जायेगा.
[अहकामुल हज सफा-२४, हज. मुफ़्ती शफी साहिब रह.]
و الله اعلم بالصواب
✏मुफ़्ती इमरान इस्माइल मेमन हनफ़ी गुफिर लहू
🕌उस्ताज़े दारुल उलूम रामपुरा, सूरत, गुजरात, इंडिया.
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