Monday, April 30, 2018

KAB AUR KITNE ROZE RAKHE?

*KAB AUR KITNE ROZE RAKHE?*

⭕AAJ KA SAWAL NO.1341⭕

Shabe barat ke kitne roze rakhne hai aur kab?
aur is raat ki ibadat kab aur kon se din karni hai?

🔵 AAJ KA JAWAB🔵

حامدا و مصلیا و مسلما
Sha'ban ke mahine me huzoor صل اللہ علیہ وسلم kasrat se roze rakhte the jab puchha gaya to farmaya is raat me wafat ke fesle hote hai jab mera fesla ho to me pasand karta hun ke us waqt me roze se hun.(AL HADEES)
wese har mahine me 13,14,15 ke roze jise ”ayyame beez“kehte Sunnat hai lihaza chaho to is mahine ne me kasrat se roze rakho, ya in tin din me rakh lo ya shabe barat ke dusre din ek roza rakh lo.
india me 1 may magal ke din magrib baad se subah sadiq tak puri raat ya aksar raat ya jis qadar himmat ho ghar me ibadat karni hai aur budh ke din 2 may ko ek roza ralhna bhi kafi hai do roze rakhne ka hukm aashurah ki tarah is mahine me nahi hai albattah is mahine me jitne zayada roze ho sake rakha behtar hai
 
و اللہ اعلم
📗MADAILE SHABE BARAAT WA SHABE QADR SE MAKHOIZ.

📝 Mufti Imran Ismail Memon.

🕌 Ustaze Darul Uloom Rampura,Surat, Gujarat,india

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शबे  बरात के  कब  और  कितने  रोज़े  रखे?

*शबे  बरात के  कब  और  कितने  रोज़े  रखे?*

⭕आज का  सवाल न.१३४२⭕

शबे  बारात के  कितने  रोज़े  रखने  है  और  कब?
और  इस रात  की  इबादत  कब  और  कौन  से  दिन  करनी  है?

🔵आज  का  जवाब 🔵

حامدا و مصلیا و مسلما

शाबान  के  महीने  में  हुज़ूर صل اللہ علیہ وسلم कसरत  से  रोज़े  रखते  थे,  जब  पूछा  गया तो  फ़रमाया,  इस  रात में  वफ़ात  के  फैसले  होते  है,  जब  मेरा  फैसला  हो  तो  में  पसंद करता  हूँ  के उस  वक़्त  में  रोज़े  से  हूँ.
(अल  हदीस)

वैसे हर  महीने  में  १३,१४,१५  के  रोज़े  जिसे  ”अय्यामे  बीज “कहते  सुन्नत  है,  लिहाज़ा चाहो  तो  इस  महीने   में  कसरत से  रोज़े  रखो,  या इन ३  दिन में रख  लो या  शबे बारात  के  दूसरे  दिन  एक  रोज़ा  रख  लो.

इंडिया  में  १  मई मंगल  के  दिन  मगरिब  बाद  से  सुबह  सादिक़  तक  पूरी रात या  अक्सर रात  या  जिस क़दर  हिम्मत  हो  घर में इबादत  करनी  है,  और  बुद्ध  के  दिन  २  मई  को   एक  रोज़ा  रखना भी  काफी  है,  दो  रोज़े  रखने  का  हुक्म  आशूरह  की  तरह   इस  महीने  में  नहीं  है. अलबत्ता इस महीने में जितने ज़ियादा रोज़े ही सके रखना बेहतर है।
 
📗मसाइल ए  शबे बरात  व  शबे क़द्र से  माखूज़.

واللہ اعلم

✏मुफ़्ती इमरान इस्माइल मेमन हनफ़ी गुफिर लहू

🕌उस्ताज़े दारुल उलूम रामपुरा सूरत गुजरात इंडिया

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شب برات کے کب اور کتنے روزے رکھے

*شب برات کے کب اور کتنے روزے رکھے*

⭕ آج کا سوال نمبر١۳۴۲ ⭕

شبِ برات کے کتنے روزے رکھنے ہیں اور کب؟ اور اس رات کی عبادات کب اور کون سے دن کرنی ہیں ؟

🔵 جواب 🔵

حامدا و مصلیا و مسلما

شعبان کے مہینے میں حضور صلی اللہ علیہ وسلم کثرت سے روزے رکھا کرتے تھے جب پوچھا گیا تو فرمایا اس رات میں وفات کے فیصلے ہوتے ہیں جب میرا فیصلہ ہو تو میں پسند کرتا ہوں کے اس وقت میں روزے سے ہوں *الحدیث*

ویسے ہر مہینہ میں ۱۳،۱۴،۱۵ کے روزے جسے *ایام بیض* کہتے ہیں، سنت ہیں لہذا چاہوں تو اس مہینہ میں کثرت سے روزے رکھو، یا ان تین دن میں رکھ لو یہ شبِ برات کے دوسرے دن ایک روزہ رکھ لو، ہندوستان میں ١ مئی منگل کے دن مغرب بعد سے صبح صادق تک پوری رات یا اکثر رات یا جس قدر ہمت ہو گھر میں عبادت کرنی ہے اور بدھ کے دن ۲ مئی کو ایک روزہ رکھنا بھی کافی ہے دو روزے رکھنے کا حکم عاشورہ کی طرح اس مہینے میں نہیں ہیں، البتہ جتنے زیادہ روزے ہوسکے رکھنا بہتر ہیں،،

واللہ اعلم بالصواب

*📘مسائل شب برات و شب قدر سے ماخوذ*

*✍🏻 مفتی عمران اسماعیل میمن حنفی چشتی*

*🕌 استاذ دار العلوم رام پورہ سورت گجرات ہند

Sunday, April 29, 2018

CRICKET DEKHNA KESA HAI?📺 *क्रिकेट देखना कैसा है* *ક્રિકેટ દેખના કૈસે હૈ?*

🎾CRICKET DEKHNA KESA HAI?📺
*क्रिकेट देखना कैसा है*
*ક્રિકેટ દેખના કૈસે હૈ?*

⭕AAJ KA SAWAL NO. 439⭕
Cricket Dekhna kaisa hai is me music,gana wagairah film ki kharabiyan nahi hoti hai to gunjaish hai ya nahi?

🔴AAJ KA JAWAB🔴

Mavjoodah daur me cricket ek aesa khel ban gaya hai ke aam taur se isme shareeat ke khilaf kaam paye jate hain.

1. namaz ka qaza kar dena.

2. us par haar-jit (win-lost) aur juwe (gambling) khelna

3. faasiqon aur gunehgaron aur gafil qism ke logon ka usko ikhtitar karna jis ki wajha se un ki sohbat milna.

4. gaflat ki had ye ho chuki hai ke din to din raat Ko bhi is me mashgul rehnna

5. criket ke waqt nav jawan ladkiyon aur aurton ka medan me jama hona unme aksar aadhi nangi hoti hai un ko dekhna.

6. raat din isee dhun aur fikr sawar ho jana jis ki wajha deenee ya dunyawi kaam me dil na lagna

7. dukan wale ka dukan se, nokri wale ka nokri se gafil ho jana, jiski wajha se der se kaam duty anjam dena ya duty par hee na jana

8. studant aur madraseh ke talaba ka apni padhai me kotahee karna

9. masjid me aane ke bad wuzu karte huwe aur wuzu se farig hokar bahot se shauqeen ka jamaat khane me bhi isi ke tazkeron me mashgool rehna

10. agar ramzan me match  ho to taraweeh aur tilawat ko qurban kar dena

11. haar-jit par patakhe, bomb fode jate hai jis ki wajha se maal zayea hota hai

12. upar ki ye harkat qaumi fasad ka sabab ho kar musalmano ka jaani maali nuqsan hota hai.

13. haarne walo ki jitne walon se ya us ki khushi manane walon se adawat-anduruni dushmani peda ho jana

14. maa-baap, biwi bachchon aur padosiyon wagairah Ke huqooq me kotahi karna.

15. bahot sa qeemati waqt jo akhirat ke imtihan ki taiyyari ke liye diya gaya tha zikro, tilawat, dawat,duaa ke bajaye is fuzool ko dekhne me zayea kar dena

16. match ke darmiyan me aane wali mukhtalif ad me music sunna aur badnigahi karna aur film aur natak dekhna, shauq peda hona wagairah nuqsanat ki wajha se criket dekhna jaiz nahi.

📕fatawa raheemiyah qadeem 7/275se 280

📙fatawa darul uloom qadeem 8/285

📘mahmoodul fatawa tafseeli daleelen 3/121se 141 se makhooz izafon ke sath.

✏IMRAN ISMAIL MEMON GUFIRA LAHOO

🕌MUDARRISE DARUL ULOOM RAMPURA SURAT GUJRAT INDIA

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*🎾क्रिकेट  देखना  केसा  है ?📺*

⭕आज का सवाल  नंबर . ९७१⭕

क्रिकेट  देखना  कैसा  है ? इस  में  म्यूजिक, गाना वगैरा  फिल्म  की खराबियां  नहीं  होती  है  तो  गुंजाईश  है  या  नहीं ?

🔴आज  का  जवाब🔴

मव्जूदाह  दौर  में  क्रिकेट  एक  ऐसा  खेल  बन  गया  है  के  आम  तौर  से  इसमें  शरीअत  के  खिलाफ  काम  पाए  जाते  हैं.

१. नमाज़  का  क़ज़ा  कर  देना.

२. उस  पर  हार-जित  (विन-लॉस्ट) और  जुवे  (गैंबलिंग) खेलना.

३. फ़ासिक़ों  और  गुनहगारों  और  गाफिल  क़िस्म  के  लोगों  का  उसको  इख़्तितार  करना  जिस  की  वजह  से  उन  की  सोहबत  मिलना.

४. गफलत  की  हद  ये  हो  चुकी  है  के  दिन  तो  दिन  रात  को  भी  इसमे मशगूल  रहना.

५. क्रिकेट  के  वक़्त  नव जवान  लड़कियों  और  औरतों  का  मैदान  में  जमा  होना  उनमे  अक्सर  आधी  नंगी  होती  है  उन  को  देखना.

६. रात  दिन  इसी  धुन  और  फ़िक्र  सवार  हो  जाना  जिस  की  वजह  दीनी  या  दुनयावी  काम  में  दिल  न  लगना.

७. दुकान  वाले  का  दुकान  से, नोकरी  वाले  का  नोकरी  से  गाफिल  हो जाना, जिसकी  वजह  से  देर  से  काम  ड्यूटी  अंजाम  देना  या  ड्यूटी  पर  ही  ना  जाना.

८. स्टूडेंट  और  मदरसे  के  तलबा का  अपनी  पढाई  में  कोताही  करना.

९. मस्जिद  में  आने  के  बाद  वुज़ू  करते  हुवे  और  वुज़ू  से  फारिग  होकर  बहोत  से  शौक़ीन  का  जमातखाने  में  भी  इसी  के  तज़किरों  में  मशगूल  रहना.

१०. अगर  रमजान  में  मैच   हो तो तरावीह  और   तिलावत  को  क़ुर्बान  कर  देना.

११. हार -जित  पर  पटाखे, बम  फोड़े  जाते  है  जिस  की  वजह  से  माल  जायेए होता  है.

१२. ऊपर  की  ये  हरकत  क़ौमी  फसाद  का  सबब  हो  कर  मुसलमानो  का  जानी  माली  नुकसान  होता  है.

१३. हारने  वालों की  जितने  वालों  से  या  उस  की  ख़ुशी  मनाने  वालों  से  अदावत -अंदुरुनी  दुश्मनी  पैदा  हो  जाना.

१४. माँ -बाप, बीवी  बच्चों  और  पड़ोसियों  वगैरा  के  हुक़ूक़  में  कोताही  करना.

१५. बहोत  सा  कीमती  वक़्त  जो  आख़िरत  के  इम्तिहान  की  तैयारी  के  लिए  दिया  गया  था  ज़िक्रो, तिलावत, दावत, दुआ  के  बजाये  इस  फ़ुज़ूल  को  देखने  में  जायेए  कर  देना.

१६. मैच  के  दरमियान  में  आने  वाली  मुख़्तलिफ़  एडवर्टाइज  में  म्यूजिक  सुनना  और  बदनिगाही  करना  और  फिल्म  और  नाटक  देखने का शौक़  पैदा  होना  वगैरा  नुक़सानात  की  वजह  से  क्रिकेट  देखना  जाइज़ नहीं.

📕फतावा  रहीमियह  क़दीम  ७ /२७५ से २८० 

📙फतावा  दारुल  उलूम  क़दीम  ८ /२८५

📘महमूदुल  फतावा तफ्सीली  दलीलें ३/१२१ से  १४१  से माख़ूज़  इज़ाफ़ों  के  साथ.

واللہ اعلم

✏मुफ़्ती इमरान इस्माइल मेमन हनफ़ी गुफिर लहू

🕌उस्ताज़े दारुल उलूम रामपुरा सूरत गुजरात इंडिया

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🎾 ક્રિકેટ દેખના કૈસા હૈ.? 📺

⭕ આજ કા સવાલ નં. ૯૭૧ ⭕

ક્રિકેટ દેખના કૈસા હૈ, ઇસમેં મ્યુઝીક, ગાના વગૈરહ ફિલ્મ કી ખરાબીયાં નહિં હોતી હૈ તો ગુંજાઇશ હૈ યા નહિં.?

🔴 આજ કા જવાબ 🔴

મૌજુદા દૌર મેં ક્રિકેટ એક ઐસા ખેલ બન ગયા હૈ કે આમ તૌર સે ઇસમેં શરીઅત કે ખીલાફ કામ પાયે જાતે હૈ.

૧. નમાઝ કા કઝા કર દેના.

૨. ઉસ પર હાર-જીત ઔર જુવા/જુગાર ખેલના.

૩. ફાસીકો ઔર ગુનહગારો ઔર ગાફિલ કિસ્મ કે લોગો કા ઉસકો ઇખ્તિતાર કરના જીસકી વજહ સે ઉનકી સોહબત મીલના.

૪. ગફલત કી હદ યેહ હો ચુકી હૈ કે દિન તો દિન, રાત મેં ભી ઇસમેં મશગુલ રહેના.

૫. ક્રિકેટ કે વકત નવજવાન લડકીયોં ઔર ઔરતો કા મેદાન મેં જમા હોના, ઉનમેં અકસર આધી નંગી હોતી હૈ ઉનકો દેખના.

૬. રાત દિન ઇસી ધૂન ઔર ફિક્ર મેં સવાર હો જાના જીસકી વજહ દીની યા દુન્યવી કામ મેં દીલ ના લગના.

૭. દુકાનવાલે કા દુકાન સે, નૌકરીવાલે કા નૌકરી સે ગાફિલ હો જાના, જીસકી વજહ સે દેર સે કામ ડયુટી અંજામ દેના યા ડયુટી પર હી ના જાના.

૮. સ્ટુડન્ટ ઔર મદ્રસહ કે તલબા કા અપની પઢાઇ મેં કોતાહી કરના.

૯. મસ્જીદ મેં આને કે બાદ વુઝુ કરતે હુએ ઔર વુઝુ સે ફારીગ હોકર બહોત સે શૌકીન કા જમાતખાને મેં ભી ઇસી કે તઝકીરો મેં મશગુલ રહેના.

૧૦. અગર રમઝાન મેં મેચ હો તો તરાવીહ ઔર તિલાવત કો કુરબાન કર દેના.

૧૧. હાર જીત પર પતાખે/ફટાકડે, બોમ્બ ફોડે જાતે હૈ, જીસકી વજહ સે માલ ઝાયેઅ હોતા હૈ.

૧૨. ઉપર કી યેહ હરકત કૌમી ફસાદ કા સબબ હો કર મુસલમાનો કા જાની માલી નુકસાન હોતા હૈ.

૧૩. હારનેવાલો કી જીતનેવાલો સે યા ઉસકી ખુશી મનાનેવાલો સે અદાવત - અંદરુની દુશ્મની પૈદા હો જાના.

૧૪. માં બાપ, બીવી બચ્ચો ઔર પડોસીયો વગૈરહ કે હુકુક મેં કોતાહી કરના.

૧૫. બહોત સે કિંમતી વકત જો આખીરત કે ઇમ્તિહાન કી તૈયારી કે લીયે દિયા ગયા થા ઝિક્ર, તિલાવત, દાવત, દુઆ કે બજાયે ઇસ ફુઝુલ કો દેખને મેં ઝાયેઅ કર દેના.

૧૬. મેચ કે દરમીયાન મેં આનેવાલી મુખ્તલીફ એડ મેં મ્યુઝીક સુનના ઔર બદનિગાહી કરના ઔર ફિલ્મ ઔર નાટક દેખના, શૌક પૈદા હોના વગૈરહ નુકસાનાત કી વજહ સે ક્રિકેટ દેખના જાઇઝ નહિં.

📕 ફતાવા રહિમીયા કદીમ ૭/૨૭૫ સે ૨૮૦. 

📙 ફતાવા દારૂલ ઉલુમ કદીમ ૮/૨૮૫.

📘 મહમુદુલ ફતાવા તફસીલી દલીલે ૩/૧૨૧ સે ૧૪૧ સે માખુઝ ઇઝાફો કે સાથ.

📝 મુફતી ઇમરાન ઇસ્માઇલ મેમણ.

🕌 ઉસ્તાદે દારૂલ ઉલુમ રામપુરા, સુરત, ગુજરાત, ભારત.

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شب برات میں اجتماعی عبادات

*شب برات میں اجتماعی عبادات*

⭕ آج کا سوال نمبر ١۳۴۱⭕

مخصوص راتوں میں نفلی عبادات مسجد میں نہیں کرنا چاہیے بلکہ گھر ہی میں کرنی چاہیے کیا یہ بات صحیح ہے؟

🔵 جواب 🔵

حامدا و مصلیا و مسلما

مسجد میں عبادت کرنے کی ایک صورت تو یہ ہے، کے مغرب یا عشاء کی نماز پڑھنے آیا تھا تو اسکے ساتھ میں بڑی رات کی نفلی عبادات بھی ضمنن پڑھ لی تو اس میں کوئی حرج نہیں، البتہ اس نفلی عبادت کو گھر میں کرتا تو بہتر اور زیادہ ثواب تھا،

کیونکہ حضور صلی اللہ علیہ وسلم تہجد اور فرض نماز کے بعد کی سنت، نفلیے گھر میں پڑھتے تھے، اس کے باوجود کہ گھر تنگ تھا، اور چراغ تک کا انتظام نہیں تھا، آپ صلی اللہ علیہ وسلم نماز میں سجدہ کرتے تو حضرت عائشہ صدیقہ رضی عنہا کے پیر کو حضور چھوتے تاکہ وہ اپنے پیر سکڑ لیں اور آپ سجدہ کر سکے، اور آپ جب سجدے سے کھڑے ہوتے تو حضرت عائشہ رضی اللہ عنہا اپنے پاؤں واپس پھیلا لیتے،

جگہ کی اتنی تنگی اور مسجد نبوی جہاں پچاس ہزار نماز کا ثواب، اتنی قریب کے پاؤں باہر نکالو تو مسجد نبوی میں پڑے پھر بھی حضور صلی اللہ علیہ وسلم نے نفلی عبادات گھر ہی میں ادا فرماتے،

دوسری صورت یہ ہے کے اپنی ضروریات سے فارغ ہوکر خاص کر کے مسجد میں جمع ہوکر عبادت کرنا حضور صلی اللہ علیہ وسلم کے طریقہ کے خلاف، بدعت اور شریعت پر زیادتی ہے

بعض لوگ عذر کرتے ہیں کہ کھر میں نیند آتی ہے، یا بچہ روتے ہیں، دل نہیں لگتا اور زیادہ عبادت نہیں ہوتی، تو اسکا جواب یہ ہیں کے خشوع اور خضوع نام ہے سنت کی اتباع کا، جس نے حضور صلی اللہ علیہ وسلم کے طریقے کے مطابق عبادت کر لی تو اسے خشوع حاصل ہے،

اگرکوئی لاکھ آہ و زاری کرے لیکن حضور صلی اللہ علیہ وسلم کے طریقہ پر نہیں تو وہ شریعت کی نگاہ میں اس کو خشوع نہیں کہا جائگا،

اور اللہ تعالیٰ کے نزدیک عبادات کی کمیت مقصود نہیں بلکہ کیفیت مقصود ہیں،

گھر میں سنت کے مطابق جتنی دیر عبادت ہوسکے کرے، طبیعت اکتا جائے اور نیند آئے تو سو جائے یہ بات حدیث سے ثابت ہیں اللہ تعالیٰ کے ساتھ تنہائی میں دعا راز و نیاز کے چند لمحہ مجمع اور بھیڑ میں  پوری رات عبادت کرنے سے بہتر ہیں،،

📘مسائل شب برات و شبِ قدر رفعتی صفہ ۶۳ سے ۶۵ کا خلاصہ باحوالہ

📙 احسن الفتاوی ۱/۳۷۳

واللہ اعلم بالصواب

*✍🏻 مفتی عمران اسماعیل میمن حنفی چشتی*

*🕌 استاذ دار العلوم رام پورہ سورت گجرات ہند*

शबे  बरात.. में  इज्तिमाई  इबादत

*शबे  बरात.. में  इज्तिमाई  इबादत*

⭕आज  का  सवाल  नंबर  १३४१⭕

मख़सूस  रातों  में  नफली  इबादत  मस्जिद  में  नहीं  करना  चाहिए  बल्कि  घर  में  ही  करनी  चाहिए  क्या  ये  बात  सहीह  है ?

🔵 आज  का  जवाब🔵

حامدا و مصلیا و مسلما

🔻मस्जिद  में  इबादत  करने  की  एक  सूरत  तो  ये  है  के  मगरिब  या  ईशा  की  नमाज़  पढ़ने  आया  था  तो  उस  साथ  में  बड़ी  रात  की  नफली  इबादत  भी  ज़िमनन  कर  ली  तो  इस  में  कोई  हरज  नहीं. हाँ  इन  नफली  इबादत  को  घर  में  करता  तो  बेहतर  और  ज़यादा  सवाब  था.

🔺क्यों के हुज़ूर  صل اللہ علیہ وسلم तहज्जुद  और  नमाज़  बाद  की  सुन्नत  नफ़्लें  घर  में  पढ़ते  थे. इस  के  बा  वजूद  के  घर  तंग  था, चिराग   तक  का  इंतिज़ाम  नहीं  था, आप  صل اللہ علیہ وسلم वसल्लम  नमाज़  में  सजदह  करते  तो  हज़रत  आइशा  رضی اللہ عنہا के  पैर  को  हुज़ूर  صل اللہ علیہ وسلم छुटे  थे, ताके  वह  अपने  पैर  सुकड़  ले  और  आप  सजदह  कर  सके,  और  आप जब  सजदह  से  खड़े  होते  तो  हज़रत आइशा  रदिअल्लहु  अन्हा  अपने  पेर  वापस  फैला  लेती,  जगा  की  इतनी  तंगी  और  मस्जिदे  नबवी  जहाँ  पचास  हज़ार  नमाज़  का  सवाब,  इतनी  क़रीब  के  पांव  बहार  निकालो  तो  मस्जिदे  नबवी  में  पड़े. फिर  भी  हज़ूर  صل اللہ علیہ وسلم ने  नफली  इबादत  घर  ही  में  अदा   फरमाते

🔻दूसरी  सूरत  ये  है  अपनी  ज़रुरियात  से  फारिग  होकर  खास  कर  के  मस्जिद  में  इस  नफली  इबादत  के  लिए  आना  या  भाइयों  और  दोस्तों  को  जमा  कर  के  लाना  इसतरह  एहतमाम  के  साथ  लोगों  का  खास  कर  के  मस्जिद  में  जमा  हो  कर  इबादत  करना  हुज़ूर  صل اللہ علیہ وسلم के  तरीकाः  के  खिलाफ, बिदअत और  शरीअत  पर  ज़यादती  है

🔺बाज़  लोग  उज़्र  करते  है  के  घर  में  नींद  आती  है  या  बच्चे  रोते  है,  दिल  नहीं  लगता  और  ज़यादा   इबादत  नहीं  होती.
तो  इस  का  जवाब  ये  है  के  ख़ुशूअ  और  ख़ुज़ूअ  नाम  है  सुन्नत  की  इत्तिबा  का. जिस  ने  हुज़ूर  صل اللہ علیہ وسلم के  तरीका  के  मुताबिक़  इबादत  कर  ली  तो  उसे  ख़ुशूअ  हासिल  है.

🔻अगर  कोई  लाख  आवो  जारी  करे  लेकिन  हुज़ूर  صل اللہ علیہ وسلم के  तरीका पर  नहीं  तो  वह  शरीअत  की  निगाह  में  उस  को  ख़ुशूअ  नहीं  कहा  जायेगा.

🔺और  अल्लाह  के  नज़दीक  इबादत  की  कम्मीयत -कॉनटीटी मक़सूद  नहीं  बल्कि  कैफियत -कोलेटी  मक़सूद  है.
घर  में  सुन्नत  के  मुताबिक़  जितनी  देर  भी  इबादत  हो  सके  करे,  तबियत  उकता  जाये  और  नींद आये  तो  सो  जाये  ये  बात  हदीस  से  साबित  है. अल्लाह  के  साथ  तन्हाई  में  दुआ  के  रजो  नियाज़  के  चंद लम्हे  मजमे  और  भीड़  में  पूरी  रात  इबादत  से  बेहतर  है.

📗मसाइल  शबे  बारात  व  शबे  क़द्र  रफ़ाति सफ़ा ६३  से  ६५  का  खुलासा  बा  हवाला
📕अहसनुल फतावा १ /३७३

واللہ اعلم

✏मुफ़्ती इमरान इस्माइल मेमन हनफ़ी गुफिर लहू

🕌उस्ताज़े दारुल उलूम रामपुरा सूरत गुजरात इंडिया

Friday, April 27, 2018

PROVIDENT FUND KI ZAKAT PART. 2. QARZA

*PROVIDENT FUND KI ZAKAT PART. 2. QARZA*

⭕AAJ KA SAWAL NO.1339⭕

Saahibe nisab shakhs ko provident fund ki zakat kitne rupiye aaye to nikalni hai ?
Aur kab se nikalni hai ? ye pese qabze me aayenge us waqt se hi us ka shumar kar  sakte hai ?

🔵JAWAB🔵

حامدا و مصلیا و مسلما

Agar Ye mulazim pehle se Sahibe Nisaab tha to fund ki raqam chahe miqdare nisaab se kam mile ya zyada uska saal alag se shumar nahi hoga,

Balki jo maal pehle se uske paas tha Jab uska saal pura hoga yani pehle se mojooda nisaab ki zakaat nikaalne ki tareekh aayegi to fund ki vasool shuda raqam ki zakaat bhi usi waqt waajib ho jayegi, chahe us nayi raqam per ek din hi guzra ho

Zakaat ki ye tafseel imaam e aazam Abu Hanifa Rh. ke qoal per he, aur usee par fatwa hai

Saahibain Rh. ke qoal ke mutabiq qarz ki har qism per zakaat Farz he,
Lihaza agar koi ahatyaat Aur taqwe per amal karte hue guzishta tamaam saalo ki zakaat Ada kare to behtar he,

iska behtar tareeqa ye he k jabse ye mulazim Sahibe Nisaab ho us waqt se har saal ke khatm per hisaab kar liya jaye, ke ab uske fund me kitni raqam jama he, Jitni raqam jama he uski zakaat Ada kar de, isi tarah har saal karta rahe.

📗Fiqhul ibadaat, 277

📘Mahmoodul fatawa 2\82
╓━═══○═✧═○═══━╖

و اللہ اعلم
✏ HAQQ KA DAYEE ANSAAR AHMAD

✒TASDEEQ IMRAN ISMAIL MEMON HANFI GUFIRA LAHOO

🕌USTAZE DARUL ULOOM RAMPURA SURAT GUJRAT INDIA

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پراویڈنٹ فنڈ کی زکوۃ قسط ٢

*پراویڈنٹ فنڈ کی زکوۃ قسط ٢*

⭕ آج کا سوال نمبر ١۳۳۹⭕

صاحب نصاب شخص کو پراویڈنٹ فنڈ کی زکوۃ کتنے روپیہ آئے تو نکالنی ہیں؟ اور کب سے نکالنی ہے؟ یہ پیسے قبضہ میں آئنگے اس وقت سے ہی اس کا شمار کر سکتے ہیں؟

🔵 جواب 🔵

اگر یہ ملازم پہلے سے صاحب نصاب تھا تو فنڈ کی رقم چاہے مقدار نصاب سے کم ملے یا زیادہ اسکا سال الگ سے شمار نہیں ہوگا،

بلکہ جو مال پہلے سے اسکا پاس تھا جب اسکا سال پورا ہوگا یعنی پہلے سے موجودہ نصاب کی زکوۃ نکالنے کی تاریخ آئے گی تو فنڈ کی وصول شدہ رقم کی زکوۃ بھی اسی وقت واجب ہو جائے گی، چاہے اس نئی رقم پر ایک ہی دن گزرا ہو،

زکوۃ کی یہ تفصیل امام اعظم ابوحنیفہ رحمۃ اللہ علیہ کی قول پر ہے اور اسی پر فتوی ہے  صاحبین رحمتہ اللہ علیہ کے قول کے مطابق قرض کی ہر قسم پر زکوۃ فرض ہیں،

لہٰذا اگر کوئی احتیاط اور تقوی پر عمل کرتے ہوئے گزشتہ تمام سالوں کی زکوۃ ادا کرے تو بہتر ہیں،

اسکا بہتر طریقہ یہ ہے کہ جب سے یہ ملازم صاحب نصاب ہو اس وقت سے ہر سال کے ختم پر حساب کر لیا جائے، کے اب اس کے فنڈ میں کتنے رقم جمع ہیں، جتنی رقم جمع ہے اس کی زکوۃ ادا کر دے اسی طرح ہر سال کرتا رہے،

📘 فقہ العبادات ٢٧۷،

📗محمود الفتاوی ۸۲−۲
واللہ اعلم بالصواب

*✍🏻 مفتی عمران اسماعیل میمن حنفی چشتی*

*🕌 استاذ دار العلوم رام پورہ سورت گجرات ہند*

प्रोविडेंट फण्ड की ज़कात पार्ट. २. क़र्ज़ा

*प्रोविडेंट फण्ड की ज़कात*
             पार्ट. २.
              *क़र्ज़ा*

⭕आज का सवाल नंबर १३३९⭕

साहिबे निसाब शख्स को प्रोविडेंट फण्ड की ज़कात कितने रुपये आये तो निकालनी है ? और कब से निकालनी है ? ये पैसे क़ब्ज़े में आएंगे उस वक़्त से ही उस का शुमार कर सकते है ?

🔵जवाब🔵

حامدا و مصلیا و مسلما

अगर ये मुलाज़िम पहले से साहिबे निसाब था तो फंड की रक़म चाहे मिक़्दारे निसाब से कम मिले या ज़्यादा उसका साल अलग से शुमार नहीं होगा, जो माल पहले से उसके पास था जब उसका साल पूरा होगा यानि पहले से मौजूदा निसाब की ज़कात निकालने की तारिख आएगी तो फंड की वसूल शुदा रक़म की ज़कात भी उसी वक़्त वाजिब हो जाएगी, चाहे उस नयी रक़म पर एक दिन ही गुज़रा हो,

ज़कात की ये तफ्सील इमाम ए आज़म अबू हनीफा रह. के कॉल पर हे और फतवा इसी पर है

साहिबैन रह. के कॉल के मुताबिक़ क़र्ज़ की हर क़िस्म पर ज़कात फ़र्ज़ हे, अगर कोई अहतयात और तक़वे पर अमल करते हुए गुज़िश्ता तमाम सालो की ज़कात अदा करे तो बेहतर हे, उसका बेहतर तरीक़ा ये हे के जबसे ये मुलाज़िम साहिबे निसाब हो उस वक़्त से हर साल के ख़त्म पर हिसाब कर लिया जाये के अब उसके फंड में कितनी रक़म जमा हे, जितनी रक़म जमा हे उसकी ज़कात अदा कर दे, इसी तरह हर साल करता रहे.

📗फ़िक्हुल इबादात २७७

📘महमूदुल फतावा २/८२

✏ हक़्क़ का दाई अंसार अहमद

✒तस्दीक़ मुफ़्ती इमरान इस्माइल मेमन

و الله اعلم بالصواب

🕌उस्ताज़े दारुल उलूम रामपुरा, सूरत, गुजरात, इंडिया.

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Thursday, April 26, 2018

پراویڈنٹ فنڈ پر زکوۃ، قسط ایک

*پراویڈنٹ فنڈ پر زکوۃ، قسط ایک*

⭕ آج کا سوال نمبر ١۳۳۸⭕

پراویڈنٹ فنڈ میں جو رقم ملازم کی تنخواہ سے کاٹی جاتی ہے اور اس پر ماہانہ یا سالانہ اضافہ کیا جاتا ہے اس پر زکوۃ کا کیا حکم ہیں؟

🔵 جواب 🔵

حامدا و مصلیا و مسلما

یہ سب ملازم کی خدمت کا وہ معاوضہ ہے جو ابھی اس کے قبضے میں نہیں آیا لہذا وہ محکمہ کے ذمہ ملازم کا  قرض ہیں،

زکوۃ کے معاملے میں فقہاء کرام رحمۃ اللہ، نے قرض کی تین قسمیں بیان فرمائی ہیں جن میں سے بعض پر زکوۃ واجب ہوتی ہے اور بعض پر نہیں ہوتی،

وصول ہونے کے بعد ضابطہ، قائدہ کے مطابق زکوۃ واجب ہوگی، جس کی تفصیل یہ ہیں،

۱ مولازم اگر پہلے سے صاحب نصاب نہیں تھا، مگر اس رقم کے ملنے سے صاحب نصاب ہو گیا تو وصول ہونے کے وقت سے ایک قمری سال پورا ہونے پر زکوۃ واجب ہوگی، بشرط کہ اس وقت تک یہ شخص صاحب نصاب رہے،

اگر سال پورا ہونے سے پہلے مال خرچ ہو کر اتنا کم رہ گیا کہ صاحب نصاب نہیں رہا تو زکوۃ واجب نہیں ہو گی،

اور اگر خرچ یا ضائع ہونے کے باوجود سال کے آخر تک مال بقدر نصاب بچا رہا تو جتنا باقی بچ گیا صرف اس کی زکوۃ واجب ہوگی، جو خرچہ ہو گیا اسکی نہیں ہوگی،،

جاری ہیں،،،،،،،،،
قسط ٢ کل انشاء الله

📘 فقہ العبادات، ٢۷۷،

واللہ اعلم بالصواب

*✒ مفتی عمران اسماعیل میمن حنفی چشتی*

*🕌 استاذ دار العلوم رام پورہ سورت گجرات ہند*

प्रोविडेंट फण्ड पर ज़कात. पार्ट १

*प्रोविडेंट फण्ड पर ज़कात. पार्ट *

⭕आज का सवाल नंबर १३३८⭕

प्रोविडेंट फण्ड में जो रक़म मुलाज़िम की तनख्वाह से काटी जाती हे और उस पर माहाना या सालाना इज़ाफ़ा किया जाता हे इस पर ज़कात का क्या हुक्म है?

🔵जवाब🔵

حامدا و مصلیا و مسلما

ये सब मुलाज़िम की खिदमत का वो मुआवज़ा हे जो अभी उसके क़ब्ज़े में नहीं आया लिहाज़ा वो महकमे-कंपनी के ज़िम्मे मुलाज़िम का क़र्ज़ हे

ज़कात के  मामले में फुक़्हा ए कीराम रह. ने क़र्ज़ की ३ क़िस्मे बयान फ़रमाई हे जिनमे से बाज़ पर ज़कात वाजिब होती हे और बाज़ पर नहीं होती,

वसूल होने के बाद जाब्ते-काइदह के मुताबिक़ ज़कात वाजिब होगी जिसकी तफ्सील ये हे

मुलाज़िम अगर पहले से साहिबे निसाब नहीं था मगर उस रक़म के मिलने से साहिबे निसाब हो गया तो वसूल होने के वक़्त से एक क़मरी-इस्लामी साल पूरा होने पर ज़कात वाजिब होगी, बा-शर्ते उस वक़्त तक ये शख्स साहिबे निसाब रहे,

अगर साल पूरा होने से पहले माल खर्च होकर इतना कम रह गया क साहिबे निसाब नहीं रहा तो ज़कात वाजिब नहीं होगी

अगर खर्च या ज़ाया होने के बावजूद साल के आखिर तक माल बा-क़द्रे निसाब बचा रहा तो जितना बाक़ी बच गया सिर्फ उसकी ज़कात वाजिब होगी, जो खर्च हो गया उसकी नहीं होगी

و الله اعلم بالصواب

बाक़ी कल इंशा'अल्लाह

📗फ़िक़हुल इबादात २७७

✏हक़्क़ का दाई अंसार अहमद

✒तस्दीक़ मुफ़्ती इमरान इस्माइल मेमन

🕌उस्ताज़े दारुल उलूम रामपुरा, सूरत, गुजरात, इंडिया.

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PROVIDENT FUND PAR ZAKAT. 1

PROVIDENT FUND PAR ZAKAT. 1

⭕AAJ KA SAWAL NO.1338⭕

🔵JAWAB🔵
حامدا و مصلیا و مسلما

★ Provident fund me Jo Raqam mulazim ki tankhwah se kaati jati he aur us per Mahana ya Saalana izafa kiya jata he is par zakat ka kya hukm hai?

🔵JAWAB🔵

Ye sab mulazim ki khidmat ka wo muaawza he Jo abhi uske qabze me nahi aaya, Lihaza wo mahkame-company ke zimme mulazim ka qarz he,

★ Zakaat ke maamle me Fuqha ikraam Rh. ne qarz ki 3 qisme bayaan farmayi he, Jinme se baaz per zakaat waajib hoti he aur baaz per nahi hoti,

Vasool hone ke baad zaabte-qaidah ke mutabiq Zakaat waajib hogi, Jiski Tafseel ye he,

★ 1- Mulazim agar pehle se Sahibe Nisaab nahi tha, magar us raqam ke Milne se Sahibe Nisaab ho gaya to vasool hone ke waqt se ek Qamri-islami Saal pura hone per Zakaat waajib hogi, Ba-sharte us waqt tak ye shakhs Sahibe Nisaab rahe,

⇨Agar Saal pura hone se pehle Maal kharch hokar itna kam reh gaya k Sahibe Nisaab nahi raha to zakaat waajib nahi hogi,

⇨ Aur agar kharch ya Jaaya hone ke bavjood Saal ke akheer tak Maal ba-qadre nisaab bacha raha to jitna baqi bach gaya sirf uski zakaat waajib hogi, Jo kharch ho gaya uski nahi hogi,

—— To be continued,
in sha Allah ta’ala,

📗Fiqhul ibadaat, 277

و اللہ اعلم

✏HAQQ KA DAYEE ANSAR AHMAD

✒TASDEEQ IMRAN ISMAIL MEMON HANFI GUFIRA LAHOO

USTAZE DARUL ULOOM RAMPURA SURAT GUJRAT INDIA

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Wednesday, April 25, 2018

ZAKAT KE GAIR MUSTAHIQEEN

*ZAKAT KE GAIR MUSTAHIQEEN*
⭕AAJ KA SAWAL NO 1337

Zakat kin kin ko nahi de sakte?

🔵JAWAB🔵

in logon ko zakaat dena jaiz nahi.

1. Apne baap, dada, dadi, par dada, par dadi.. upar tak

2. apni maa, nana, nani, par nana, par nani... upar tak

3. apne haqeeqee ladke, pote, potiyan, Par pote, par potiyan.. niche tak

4. apni haqeeqi ladki,nawase, nawasiyan,par nawase, par nawasiyan.. niche tak

5. shohar ka apni biwiko zakat dena iseetarah biwi Ka apne shohar ko zakat dena jaiz nahi

6. aysi talaq shudah awrat jo iddat guzar rahi ho us ke shohar ka us ko zakat dena na jaiz hai

7. maaldar sahibe nisab ki muhtaaj nabalig awlad ko

8. jo awrat bewa malike nisab hai us ko aur Us ke na balig bachche ko

9. madrasah Ke ustaz ko aur masjid Ke imam ko zakat ke rupiye se tankhaa dena na jaiz hai

10. Huzoor SALALLAHU ALAIHI WASALLAM ke khandan walon ko zakar jo ke hamare malon ka mel hai dena Jaiz nahi agar woh gareeb hai to zakat ke alawaa Ka rupiya den

11. maaldar malike nisab ko

12. zakat Ka rupiya masjid ki, madrasah ki, khanqah ki, musafir khane ki, yateem khane ki, school ki, aam raston ki tameer me, kunwe, boring aur nahron ki khudai Me dena Jaiz nahi.

13. zakar ke rupiye se kafan khareedna, qabarsatan ki zameen khareedna na Jaiz hai

14. woh tamam surten Jis me mustahiq ko bila aewaz bila shart hamesha ke liye malik banana paya nahi jata wahan zakat dene se zakat ada na hogi

📕masaile zakat (rafat) safa 285,286 se makhooz

📚kai urdu fatawon ke hawalon ke sath,

Mufti Imran Ismail Memon hanafi gufira lahoo MUDARRISE DARUL ULOOM RAMPURA SURAT GUJRAT INDIA

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AETIKAF KE MAKRUHAAT

*AETIKAF KE MAKRUHAAT* ⭕AAJ KA SAWAL NO.2101⭕ Aetikaaf kin cheezon se makrooh hota hai?  🔵JAWAB🔵 Aetikaf niche dee hui baton se makrooh ho...