Tuesday, April 10, 2018

शबे  मेराज  की  इबादत  बिदअत  क्यों ?*

*शबे  मेराज  की  इबादत  बिदअत  क्यों ?*

⭕आज  का  सवाल  नंबर  १३३२⭕

शबे  मेराज  में  इबादत  करना  बिदअत  क्यों  ?
सो  जाने  से  अचछा  इबादत  करना  करना  क्यों नहीं ?

🔵 आज  का  जवाब 🔵

حامدا و مصلیا و مسلما

*(मेसेज  ९८९  से  आगे)*

*उसके  बराबर  कोई  अहमक़  (बेवक़ूफ़) नहीं*
   
फिर  सरकार  ए  दो  आलम  सल्लल्लाहु  अलैहि  वसल्लम  के  दुन्या  से  तशरीफ़  ले  जाने  के  बाद  १००  साल  तक  सहाबा  ए  किराम  राज़ी  अल्लाहु  अन्हुम  दुन्या  में  मौजूद  रहे, इस  पूरी  सदी  (१०० साल ) में  कोई  एक  वाक़िअ  ऐसा  साबित  नहीं  है, जिस  में  सहाबा  ए  किराम  रज़ी अल्लाहु  अन्हुम  ने  २७  रजब  को  ख़ास  एहतेमाम  कर  के  मनाया हो, जो  चीज़  हुज़ूर  अक़दस  सल्लल्लाहु  अलैहि  वसल्लम  ने  नहीं  की  और  जो  आप  सल्लल्लाहु  अलैहि  वसल्लम  के  सहाबा  ने  नहीं  किया  उसको  दीन  का  हिस्सा  क़रार  देना  या  उसको  सुन्नत  क़रार  देना  या  उसके  साथ  सुन्नत  जैसा  मामला  करना  बिदअत  है , अगर  कोई  शख्स  ये  कहे  के  में  (म’आज़ल्लाह) हुज़ूर सल्लल्लाहु  अलैहि  वसल्लम  से  ज़ियादा  जनता  हु  के  कौनसी  रात  ज़ियादा  फ़ज़ीलत  वाली  है  या  कोई  शख्स  ये  कहे  के  सहाबा  ए किराम  रज़ी  अल्लाहु  अन्हुम  से  ज़ियादा  मुझे  इबादत  का  ज़ौक़  है, अगर  सहाबा  ने  ये  अमल  नहीं  किया  तो  में  उसको  करूँगा, उसके  बराबर  कोई  अहमक़  नहीं.

*बनिये से  सयाना सो  बाउला*
      
हमारे  वालिद  हज़रत मुफ़्ती  मुहम्मद  शफी साहिब  क़द्दसालहु सिर्रहु  फ़रमाया  करते  थे  के  उर्दू  में  एक  मिसाल  और  कहावत  है  जो  हिंदुस्तान  के  अंदर  मशहूर  थी  अब  तो  लोग उसके  मायने  भी   नहीं  समझते, वो  ये  के :
“बनिये से  सयाना  सो  बाउला”
यानि  जो  शख्स  ये  कहे  के  में  तिजारत  में  बांये  से  ज़ियादा  होशयार  हूँ, में  उससे  ज़ियादा  तिजारत  के  गुर  जानता हूँ  तो  हकीकत  में  वो  शख्स  बाऊला यानि  पागल  है, इस  लिए  के  बनिए   से  ज़्यादा  तिजारत  के  गुर  जानने  वाला  और  कोई  नहीं  है, ये  तो  आम  ज़रबुल  मिसाल  की  बात  थी.

*सहाबा  ए किराम  से   ज़ियादा  दीं  को  जानने  वाला  कौन ?*

लेकिन  जहाँ  तक  दीन  का  तअल्लुक़  है, हकीकत  ये  है  के  सहाबा  र.दी., ताबईन  और  तबे ताबेइन  दीन  को  सब  से  ज़ियादा  जानने  वाले, दीन  को  खूब  समझने  वाले, दीन  पर  मुकम्मल  तौर  पर  अमल  करने  वाले  थे, अब  अगर  कोई  शख्स  ये  कहे  के  में  उनसे  ज़ियादा  दीं  को  जानता  हूँ  या  उनसे  ज़्यादा  दीं  का  ज़ौक़  रखता  हूँ  या  उनसे  ज़ियादा  इबादत  गुज़ार हूँ  तो  हकीकत  में  वो  शख्स  पागल  है, वो  दीन  की  फ़हम नहीं  रखता.

*वो  दीन  में  ज़ियादती  कर  रहा  है*

अब  अगर  कोई  शख्स  इस  रोज़े  का  एहतेमाम  करे  तो  वो  दीन में  अपनी  तरफ  से  ज़ियादती  कर  रहा  है  और  दीन  को  अपनी  तरफ  से  घड़  रहा  है. लिहाज़ा  इस  नुक़्ते  ए  नज़र  से  रोज़ा  रखने  जाइज़ नहीं.
हाँ ! अलबत्ता  अगर  कोई  शख्स  आम  दिनों  की  तरह  इसमें  भी  रोज़ा  रखना  चाहता  है  तो  रख  ले, इसकी  मुमानियत  नहीं, लेकिन  इसकी  ज़ियादा  फ़ज़ीलत  समझ  कर, इसको  सुन्नत  समझ  कर, इसको  ज़ियादा  मुस्तहब  और  ज़ियादा  अजर ओ सवाब  का  मुजीब  समझ  कर  इस  दिन  रोज़ा  रखने, या  उस  रात  में  जागना  दुरुस्त  नहीं, बल्कि  बिदअत  है .
واللہ اعلم

📗शैखुल  इस्लाम  हज़रात  मुफ़्ती  तक़ी उस्मानी  डा.ब. के  इस्लाही  ख़ुत्बात  के  बयान  का  खुलासा

✏मुफ़्ती इमरान इस्माइल मेमन हनफ़ी गुफिर लहू

🕌उस्ताज़े दारुल उलूम रामपुरा सूरत गुजरात इंडिया

http://www.aajkasawalhindi.page.tl

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