*📓गैरों की किताब और मज़ामीन पढ़ना*📔
⭕आज का सवाल नं.११५६⭕
गैर मुस्लिम की मज़हबी किताब उन की मज़हबी आर्टिकल-लेख पढ़ना केसा है ?
🔵जवाब🔵
حامدا و مصلیا و مسلما
गैर मुस्लिम की कोई भी मज़हबी किताब पढ़ना जाइज़ नहीं, यहाँ तक के हज़रत मूसा अलैहिस सलाम पर नाज़िल होने वाली अभी की तौरात और हज़रत ईसा अलैहिस सलाम पर नाज़िल होने वाली अब की इंजील तक पढ़ने की इजाज़त खुद नबी करीम सलल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हज़रात उमर रदी अल्लाहु अन्हु जैसी समझदार शख़्सिय्यत जिन की राय पर क़ुरआन की आयतें नाज़िल हुई थी नहीं दी,
बल्कि हदीस में आता है के जब वह हुज़ूर सलल्लाहु अलैहि वसल्लम की मवजूदगी में तौरात पढ़ने लगे तो हुज़ूर सलल्लाहु अलैहि वसल्लम का चेहराः गुस्से के मारे ऐसा सुर्ख-लाल हो गया जैसा के अनार के दाने निचोड़ दिए गए हो, और वह तो पढ़ते जा रहे थे, हज़रत अबू बक्र रज़ी अल्लाहु अन्हु के तवज्जुह दिलाने पर रुके और अल्लाह और उस के रसूल के गुस्से से पनाह की दुआ मांगी, तब जाकर हुज़ूर सलल्लाहु अलैहि वसल्लम का गुस्सा ठंडा हुवा.
हुज़ूर सलल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया अगर मूसा अलैहि सलाम खुद भी मव्जूद होते तो उन को भी मेरी पैरवी के बगैर चारा न था.
📗(खुलासाः हदीसे मिश्क़ात) क्यों के कुरान के अलावह कोई भी किताब गलतियों से पाक नहीं, तमाम आसमानी किताब में तहरीफ़ -चेंजस हो चूका है. अगर तौरात में कोई बदली हुई गलत बात आ जाती तो हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के सामने ही हज़रत उमर रज़. पढ़ रहे थे, हुज़ूर सलल्लाहु अलैहि वसल्लम बतौर उस्ताज़ गलती बता देते, फिर भी हुज़ूर सलल्लाहु अलैहि वसल्लम को ये गंवारा नहीं हुआ के कुरान जैसी हर शोबे-फिल्ड में मुकम्मल रहनुमाई करने वाली अल्लाह की किताब मौजूद है और उसका रसूल में खुद मौजूद हूँ फिर दूसरे मज़हब की किताब को कियूं देखा !
और उम्मत को भी सबक़ देना था के जब हमारे अगले नबियों की अल्लाह की भेजी हुयी किताब पढ़ने की भी अब इजाज़त नहीं तो इंसानो की लिखी हुई महाभारत गीता वगैरह गैरों की मज़हबी पुर्तियाँ-आर्टिकल पढ़ने की कैसे इजाज़त हो सकती है ?
हमारे पास हुज़ूर सलल्लाहु अलैहि वसल्ला की लाखों अहादीस भी आजतक महफूज़ है, उस में दुन्या आख़िरत की भलाई और गाइडेंस-कामयाबी मौजूद है, दूसरे की लिखी हुई मज़हबी चीज़ें जिन में ये सिफ़त-फायदे नहीं उसे क्यों देखे !
गैर क़ौम की मज़हबी किताब पढ़ने से ईमान कमज़ोर होता है. इमानि अक़ीदों के खिलाफ शैतानी वस्वसे पैदा होते है, यहाँ तक के आदमी के गुमराह होने का भी खतराः है,
लिहाज़ा न खुद किसी की मज़हबी किताब- आर्टिकल-लेख पढ़ो, न अपने बच्चों को पढ़ने दो. यह चीज़ें पढ़ना गुनाह है.
و الله اعلم بالصواب
✏मुफ़्ती इमरान इस्माइल मेमन
🕌उस्ताज़े दारुल उलूम रामपुरा, सूरत, गुजरात, इंडिया.
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