*झंडे को सलामी देना*
🔴आज का सवाल ११०२ 🔴
१५ अगस्त और २६ जान. को झंडा (फ्लैग) बलन्द किया जाता है, इस मौके पर शिरकत करनेवाले भी हाथ उठाकर उसको सलामी पेश करते हैं, और झंडे के आगे झुकते हैं, उसका शरई हुक्म क्या है?
🔵जवाब🔵
حامدا و مصلیا و مسلما
झंडा लहराना और सलामी देना दुरुस्त हे, एक सियासी और फ़ौजी अमल है, और अहले इल्म ने उसको जाइज़ क़रार दिया है,
अलबत्ता उस मौके से ऐसा कोई अमल करना जिस से झंडे की गैर मा'अमली [एक्स्ट्रा आर्डिनरी] ता'अज़ीम [रेस्पेक्ट] ज़ाहिर होती हो, जैसे दोनों हाथ जोड़ना या झुकना जाइज़ नहीं है, इस्लामी पॉइंट ऑफ़ व्यू से किसी भी मख्लूक़ के साथ इस तरह की ता'अज़ीम का सुलूक सहीह नहीं है.
हज़रत मुफ़्ती किफ़ायतुल्लाह साहब रहमतुल्लाहि अलैहि फरमाते हैं
*झंडे को सलामी दे सकते है इस्लामी हुकूमतों में भी होता है उस में ताज़ीम का शुबह हो तो उस में इस्लाह हो सकती है.*
(इस तरह के सर बुलंद कर के सीना तान कर सलामी दी जाये) लिहाज़ा इस को मुतलक़न-बिलकुल मुशरिकाना अमल क़रार देना सहीह नहीं.
📚किताबुल फतावा १/२८१
फतावा रहीमियः.करांची १०/१८०
و الله اعلم بالصواب
✏मुफ़्ती इमरान इस्माइल मेमन
🕌उस्ताज़े दारुल उलूम रामपुरा, सूरत, गुजरात, इंडिया.
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