*🇮🇳वन्दे मातरम कहने का हुक्म🚩*
⭕आज का सवाल न.११०१⭕
वन्दे मातरम कहना केसा है ?
अगर नाजाइज़ है तो क्यों ?
क्या वतन से मुहब्बत नहीं करनी चाहिए ?
🔵जवाब🔵
حامدا و مصلیا و مسلما
मुसलमानो को इस मुल्क से बड़ी मुहब्बत है, उस ने इस मुल्क को आज़ाद करने के लिए आज़ादी की जंग हिन्दुओं से पहले १७७२ में शाह अब्दुल अज़ीज़ मुहद्दिसे देहलवी रह. के अँगरेज़ के खिलाफ जिहाद के फतवे के बाद शुरू कर दी थी, उसी दिन से मुसलमानो ने अपने खून से हिंदुस्तान की धरती को सींचा है और वतन से इतनी ज़यादा मुहब्बत है के मरने के बाद नहाकर इसी में दफ़न होता है,
लेकिन मुसलमान के लिए ये बात मुमकिन नहीं के वो किसी चीज़ को अल्लाह और उसके रसूल से ज़यादा चाहे और उससे मोहब्बत करे या उसका वो एहतेराम किया जाये जो खुदा के लिए ख़ास हे, पूजा और बंदगी के लायक सिर्फ और सिर्फ अल्लाह पाक की ज़ात हे, उस के सिवा किसी की इबादत जाइज़ नहीं, फ़रिश्तो की, न रसूलो की, न किसी वली की, और न ही किसी और चीज़ की. और इंसान सिर्फ अल्लाह का बन्दा हे, दरया, पहाड़, सितारे, और किसी मख्लूक़ का नहीं, इस लिए वतन से वो मोहब्बत जिससे बंदगी लाज़िम आये किसी हाल में जाइज़ नहीं, हमारा ईमान और अक़ीदा -मान्यता हे के अल्लाह के सिवा किसी की बंदगी करना किसी हाल में जाइज़ नहीं, वतन को माबूद का दर्जा दिया जाये तो ये अल्लाह के साथ शिर्क -पार्टनर मानना हे, और शिर्क तो किसी हाल में माफ़ नहीं,
बैक ग्राउंड में इस गीत को देखना चाहिए जो वंदे मातरम के नाम से मशहूर है. ये गीत (वंदे मातरम) बंकिम चंद्र चटर्जी ने लिखा हे, तारीख इतिहास शाहिद -गवाह हे के ये *अंग्रेज़ो की खुशामद में कहा गया हे, इसी लिए मुल्क के बड़े लीडर्स पंडित जवाहर लाल नेहरू, सुभास चंद्र बोस वगेरा* ने भी इस निज़ाई (लड़ाई पैदा करने वाले) तराने को *नापसंद किया हे* और गीत के बारे में मुसलमानो के इख्तिलाफ को सहीह और हक़ीक़ी और उन की धार्मिक भावना को ठोकर पहुंचनेवाला मान लिया है. इस गीत की शुरुआत इस मिसरा (पंक्ति) से होती है,
में तेरे सामने जुक्ता हूँ ए मेरी माँ (ज़मीन)
फिर आगे यूँ है,
तू ही मेरी दुन्या हे, तू ही मेरा धरम हे,
फिर गीत की आखिर में इस तरह है,
में गुलाम हु, गुलाम का गुलाम हु, गुलाम के गुलाम का गुलाम हु, अच्छे पानीअच्छे फलों वाली माँ ! तेरा बन्दा हूँ"
इसी गीत में एक जगह हिंदुस्तान को दुर्गा माता का दर्जा दे कर कहा गया है,
तू ही हे दुर्गा हथ्यार बंद हाथो वाली"
ये हे वो नज़म जिसमे शायर ने वतन को खुदा से बढ़ा कर माबूद -इबादत के क़ाबिल का दर्जा दिया हे, मुसलमानो से इसका चाहत करना के इस खियाल को क़ुबूल कर ले, अपने ज़मीर को बेच कर और अपने अक़ीदे को तोड़ कर दुसरो की रवाँ रवि में ये शिरकिया तराना पढ़े, मज़हबी सख्ती और जबर्दस्ती के सिवा क्या हे ??
ये तो अक़ीदे की बात हुवी, सिक्के का एक और रुख भी हे, ये के वंदे मातरम असल में बंगाली नावेल "आनंद मुठ" का हिस्सा हे, हिन्दुओ को मुसलमानो के खिलाफ भड़काया और उकसाया गया हे, के शोले भड़काने की कोशिश की गयी हे, अंग्रेज़ो का वेलकम किया गया हे, कोई सच्चा वतन से मोहब्बत रखने वाला जिसका दिल सहीह मायनो में "दिल हे हिंदुस्तानी" की तस्वीर हो, अंग्रेज़ो के पिट्ठू और नफरत फैलाने वाले आशार -गीत को पसंद कर सकता हे ? उसको अच्छा समझ सकता हे ?? कदापि नहीं.
लिहाज़ा हज़ारो मीरा कुमारी और दीगर बिन सेक्युलर फ़िरक़ा परस्त लोग नाराज़ होते रहे है, हम ईमान वाले ऐसे लगव और अक़ीदा और ईमान के खिलाफ तराने को कभी क़ुबूल नहीं कर सकते, में तो कहूंगा के सच्चे वतन परस्त और सेक्युलर लोग कभी इस तराने को नहीं गायेंगे, जवाहर लाल नेहरू, सुभास चंद्र बोझ, और डॉ.लोहया जैसे कई बड़े गैर मुस्लिम लोग बी इसको नहीं मानते थे.
(मअख़ूज़ अज़ राहे अमल) बी फतावा सेक्शन
✏मुफ़्ती सिराज सिदात, चिखली, वलसाड
و الله اعلم بالصواب
✏इज़ाफ़ा व तसहील मुफ़्ती इमरान इस्माइल मेमन
🕌उस्ताज़े दारुल उलूम रामपुरा, सूरत, गुजरात, इंडिया.
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