Saturday, May 6, 2017

१५ शाबान  यानी  शब् -ऐ -बरात  की  फ़ज़ीलत  साबित  है

*१५ शाबान  यानी  शब् -ऐ -बरात  की  फ़ज़ीलत  साबित  है*

⭕आज  का  सवाल  नंबर  १००३⭕

शबे  बरात  की  फ़ज़ीलत  मोअतबर  रिवायत से  साबित  है ?
गैर  मुक़ल्लिद  और  बाज़  मुक़ल्लिद  अरब  हज़रात  भी  इंकार  करते  है, उस  की  रिवायत को  मव्जूआ -बनावटी  क़रार  देते  है लिहाज़ा  सुबूत  पेश  करने  की गुज़ारिश.

🔵जवाब🔵

🔶शब्  ऐ  बरात  के  मुताल्लिक़
मुख़्तसर  तहक़ीक़ी  जाइज़ाह.
बरात  के  लुग़वी  मानई   बरी  होने के  है. इस  रात  में  गुनाहगारो  की मग़फ़िरत  और  मुजरिमो  की  बरात होती है,  इसलिए  इस  को  शब् -ऐ -बरात कहते है. ये  शाबान  की  १५  रात है, यानि १४  शाबान  के ग़ुरूब  से  शुरू  होती है.

हज़रत  अबू  मूसा  अशरी
(रज़ि अल्लाहु  अन्हु) से  रिवायत  है  के अल्लाह  के रसूल  सल्लल्लाहु अलैहि  वसल्लम  ने  फ़रमाया:
“अल्लाह  तआला निस्फ़ शाबान  की रात को
आसमान  दुन्या  पर  नुज़ूल  फरमाते है,  और  हर  एक  की मग़फ़िरत  फरमाते
हैं, सिवाए  ऐसे  शख्स  के  जो मुशरिक  हो  या  जिसके  दिल  में  कीना
(बुग्ज़) हो. 

📘इब्ने माजह

ग़ैर  मुक़ल्लिदीन के  एक  बड़े
मुहद्दिस जिन  की  तहक़ीक़ पर  ग़ैर मुक़ल्लिदीन  को  नाज़ है  यानि अल्लामा  नसीरुद्दीन अल्बानी  ने  इसे
हसन  कहा  और सहीह  भी  कहा.

📗सहीह  इब्ने  माजह सफ़्हा  ४१४

नाम निहाद  अमल बिल हदीस  के दावेदार के  लिए  एक  हदीस काफी  क्यों
नहीं ? जो  लोग हदीस  पर  अमल के मुद्दई  है, उनको तो इसमें  और ज़ियादा  हक़-परस्ती और  हदीस  से
दिलचस्पी  का  मुज़ाहेरा  करते  हुए इसको  क़ुबूल  करना  चाइये.
समझदार  के  लिए  इशारा  काफी  है!
अल्बानी साहब  सनद  के मुआमले मैं  बड़े सख्त  है, लेकिन  इसके बावजूद उन्होंने शब् -ए-बरात  के सिलसिले  से  और भी कई अहादीस  को
सहीह  और हसन कहा  है.
मज़ीद देखिए: सिलसिलाह अल-अहादीस

📓अल-सहीहह लील अल्बानी  पेज .१३५/३,
रक़म ११४४

🔷१५  शाबान  यानि शब्-ए-बरात  की
फ़ज़ीलत  साबित  है

ग़ैर  मुक़ल्लिदीन के  और  एक  बड़े मुहद्दिस  अल्लामा  अब्दुर  रहमान मुबारकपुरि साहब  ने  तोहफतुल अहवाज़ी में  १५  शाबान  के  फ़ज़ाइल की
अहादीस  ज़िक्र की  और  उनमे

1. हज़रत आईशा  (रदिअल्लाहु  अन्हा  )

२. हज़रत मुआज  बिन  जबल  (रदि अल्लाहु अन्हु )

३. हज़रत अब्दुल्लाह  बिन  उम्र  (रदि अल्लाहु अन्हु )

४. हज़रत कसीर बिन  मुर्रा  (रदि अल्लाहु अन्हु )

५. हज़रत अली  (रदिअल्लाहु अन्हु)
की  अहादीस  को  जमा  किया,  मुख्तलिफ  हदीस  की  किताबों  से. फिर  आखिर  में अपना  फैसला  सुनाया  के

"तो  ये  अहादीस  मजमूई  तौर  पर हुज्जत  हैं  उन  लोगो  के  खिलाफ  जो ये  दावा  करते  हैं  के  कोई  बात  १५
शाबान  की  फ़ज़ीलत  साबित  नहीं,
वल्लाहु  ता'अला  आलम ."

📘तोहफतुल अहवाज़ी  पेज ४४१ -४४२ /३
स्कैन  पेज :

गौर   फ़रमाया  जाये  के  अल्लामा  अब्दुर रहमान  मुबारकपुरी  साहब  किस क़द्र  वज़ाहत  फरमाते  है  के  जो  लोग ये  गुमान  कर  बैठे  है  के  शब् -ए-बारात  की  फ़ज़ीलत  साबित  नहीं, उनपर  ये अहादीस  हुज्जत  है, अगर  फिर  भी उनको  कोई  न माने  तो  क्या  इलाज़ है ?

🔷ये  रात  दीगर  और  रातों  की तरह  नहीं

ग़ैर मुक़ल्लिद  मुअहक़ीक़  उबैदुल्लाह मुबारकपुरी  साहब  मिश्क़ात  की  शरह
मे शाबान  की  दरमियानी  शब् (शब्-ए-बरात) की  फ़ज़ीलत  के  सिलसिले
से  वारिद  अहादीस  का  ज़िक्र  करने  के  बाद  लिखते  है :

"ये  सारी  हदीसें  शाबान  की
दरमियानी  सब  की  अज़मत  और  उसकी  शान-ए-जलालत  पर दलालत  करती  है
और  उसपर  भी  के  ये  रात  दीगर और रातों  की  तरह  नहीं  है. लिहाज़ा इससे  ग़फ़लत  बरतना  मुनासीब नहीं,
बल्कि  इबादत  और  दुआ  और  ज़िक्र  और
फ़िक्र  के  ज़रिये  इसमें जागना मुस्तहब  है."

📔मिरात  शरह
मिश्कात  पेज ३४१-३४२/४

🔶तीसरी  सदी  हिजरी  में  अहले  मक्काह
का  शब्-ए-बरात  में  इबादत
करना

इमाम  अबू  अब्दुल्लाह  मुहम्मद  बिन इस्हाक़  बिन  अब्बास  फकीही  मक्की
(मुतवफ़्फ़ी  २७५  हिजरी) ने  अपनी
तारिख  की  किताब  "अखबार-ए-मक्काह" में  एक  बाब  (हैडिंग) बाँधा है:
"अहले  मक्काह  का  अमल  १५  शाबान
और  उनका  मुजाहिदा  उस  रात  में  उसकी  फ़ज़ीलत  की  वजह  से "
फिर  लिखते  हैं :
"और अहले  मक्का  ज़माना-ए-माज़ी  से
उस  दिन  तक  जब  भी  पन्द्रवीं  (१५ )रात  आती शाबान  की,  तमाम  मर्द  और
औरत  मस्जिद  (हराम ) में  जाते, फिर
नमाज़  पढ़ते  और  तवाफ़  करते  और सारी  रात  इबादत  करते. सुबह  तक  तिलावत  करते, मस्जिद-ए-हराम  में. यहाँ  तक  के  पूरा  क़ुरान  मुकम्मल  करते  और
नमाज़  पढ़ते. और  उनमे  से  बाज़  उस रात  १००  रकअत  नमाज़  पढ़ते  इस
तरह  के  हर  रकअत  में  अल्हम्द  के बाद  सूरह  इखलास  १०  मर्तबा
पढ़ते, (ये  ज़रूरी  और  सुन्नत  समझे  बगैर  पढ़  सकते  है) और  ज़म-ज़म  का  पानी  लेते और  उस  रात  पीते  और  उससे  गुसल करते  ...... इस  के  ज़रिए  इस  रात  की
बरकत  तलाश  करते, और  इस  मामले में  बोहोत  सी  अहादीस  मरवी
है.”
📙अखबार-ए-मक्का पेज ८४/३

शबे  बरात  की  इबादत, रोज़े, अहम्  उमूर  के  फैसले  कई  ज़ईफ़  रिवायत  से  साबित  है,  मुख्तलिफ  रिवायत  से  सुबूत  और  सलफ  का  मुतवातिर  मामूल  होने  की  वजह  से  रिवायत  हद्दे तवातुर  को  पहुंचकर  उस  का  ज़ुआफ़  दूर  हो  जाता  है, मेसेज  को  अब  मुख़्तसर  करते  हुवे उन  की  रिवायतों  और  किताबों 
📚के  सिर्फ  हवाले  पेश  करता  हूँ, रिवायत  का  मतन मुनाजिरे  अहले  सुन्नत  मौलाना  इल्यास  साहब  घुम्मन  के  उर्दू  मेसेज  में  देख  सकते  हो.

📗 सुएबुल ईमान  लील  बैहक़ी  हदीस  नंबर ३५५४, ३५५६, ३/३७८
📙जमीउल  अहादीस  लिस सियूटी  नंबर .७२६५
📘कंज़ुल  उम्माल  नंबर . ७४५०
📔 मजमउज़  जवाईद नंबर . १२९५७
📓अत्तरगीब  वत तरहीब  ४१९०
📗अत्तरगीब  लील मुनज़ीरी  १५४७
📙 मिश्कात नंबर १३०५
📘किताबुल  उम्  लिश  शफ़ीई  १/२३१
📔सुनने कुबरा  लील  बैहक़ी  ३/३१९
📓इब्ने  माजाह  १३८८
📕तिर्मिज़ी  ७३९

खुलासा: इन  हवालात  और
तफ्सीलात  से  वाज़िह  हो गया  के
“शब्-ए-बरात” की  फ़ज़ीलत  साबित  है 
और  खुद  ग़ैरमुक़ल्लिद  उलमा  इसके क़ाइल है  और  रात  मैं  जागने  और
इबादत  करने  को  मुस्तहब  क़रार देते  है .मगर  अफ़सोस  आज के  (नाम निहाद) अहले  हदीस  लोगों  का  आम
नुक़्ता -नज़र  हो गया  है  के
“शब्-ए-बरात ” कोई  चीज़  नहीं .
दुआ  है  के  अल्लाह  रब्बुल  इज़्ज़त  सहीह फ़हम  और  गहरी  नज़र  अता फरमाए
और  हर  एक  को  क़ुबूल-ए -हक़  की तौफ़ीक़  अता फरमाए.

واللہ اعلم

✏तसहीह  और  इख्तिसार  और  इज़ाफ़ा

✏मुफ़्ती इमरान इस्माइल मेमन हनफ़ी गुफिर लहू

🕌उस्ताज़े दारुल उलूम रामपुरा सूरत गुजरात इंडिया

http://www.aajkasawalhindi.page.tl

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