Sunday, May 28, 2017

रोज़े की क़ज़ा और कफ़्फ़ाराह का उसूल

*रोज़े  की  क़ज़ा  और कफ़्फ़ाराह का  उसूल*

⭕आज  का  सवाल  नंबर  १०२५⭕

रोज़ा  तोड़ने  की  वजह  से  क़ज़ा  और  कफ़्फ़ाराह  कब  वाजिब  होता  है  और  कब  नहीं?
इस  का  क्या  उसूल  है?

🔵 आज  का  जवाब🔵

حامدا و مصلیا و مسلما

वह  सूरतें  जिन  से  कफ़्फ़ाराह  और  क़ज़ा  दोनों  वाजिब  है  वो  ये  है,

१. रमजान  के  अदा  रोज़े  में  बिला  उज़्र जानबूझकर  ऐसी  चीज़  खाना  जो  ग़िज़ा-खाने  के  तौर  पर  या  दवाई के  तौर पर  ही खायी  जाती  हो  या  कामिल  लज़्ज़त के  तौर  पर  हो इस्तिमाल  होती  हो  खा पी  लेना  या  इस्तिमाल करना.

इस से    मालूम  हुआ  के  कच्चा  खाना खाने  से,बीड़ी पिने से,लगाने की दवा  निगल  जाने  से, हाथ  से  मणि  निकालने से  (ऐसे  पर  अल्लाह  की  लानत  है),बव  से सिर्फ  चिमटने  या  बोसा  लेने  से  इंज़ाल  हो  गया  तो कफ़्फ़ाराह  नहीं. इन  चीज़ों ग़िज़ाइयत, दवाईयत, कामिल नफा  कामिल  लज़्ज़त  नहीं.

२. जानबूझ  कर  सोहबत करना.

३.आंख  में  दवा लगाई  या  उलटी  हुई  फिर ये  समझकर  के  रोज़ा  टूट  गया हालांकि  इन  दोनों  से  रोज़ा  नहीं  टूटा था  फिर  भी  जानबूझ कर   खा  पी  लिया.

*वह  शक्लें  जिन  में  क़ज़ा  है कफ़्फ़ाराह  नहीं है वो  ये  है*

1. नफल रोज़ा, रमजान  का  क़ज़ा  रोज़ा  या किसी  शारी  उज़्र  जैसे  बीमारी, सख्त तकलीफ, सफर  की वजह  से रोज़ा  तोड़  दिया  तो  कफ़्फ़ाराह  वाजिब नहीं

📗>मसाइले रोज़ा

📔>इल्मुल  फुकाह जिल्द सोम से  माखूज़

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