Wednesday, May 17, 2017

ज़कात  के  मुस्तहिक़ीन

*ज़कात  के  मुस्तहिक़ीन *

⭕आज  का  सवाल नंबर  १०१४  ⭕

ज़कात  किन  किन  लोगों  को  दे  सकते  है?

🔵 आज  का  जवाब 🔵

हर  वह  शख्स  जो  असली  ज़रुरत  यानि इस्तिमाल  की  चीज़ों  और  क़र्ज़  हो  तो अदा  करने  के  बाद  साढ़े  बावन  टोला  ६१२.३५  ग्राम  चाँदी  की  क़ीमत  के  किसी  भी क़िस्म  के  माल  का  मालिक  न  हो.
तो  वह  ज़कात  ले  सकता  है.
अगरचे  तंदुरस्त  हो  और  कमाता  भी  हो.

अगर  किसी  के  पास  ज़रुरत  से  ज़ाइद  माल  यानि  ३  जोड़ी  से  ज़ियादा   कपड़े, दो  जोड़ी  से  ज़ाइद  चप्पल, शो  कॅश  के  बर्तन  हो, टीवी, नाजाइज़  खेल  की  चीज़ें, ज़रुरत  से  ज़ाइद  प्लाट  वगैरा   इस्तिमाल  में  न  आनेवाली   चीज़ें  हो  इन  में  से  एक  या  बाज़  चीज़ों  की  क़ीमत  साढ़े   बावन  टोला  ६१२.५५ ग्राम  चाँदी  को  पहुंच  जाये  तो  ये  शख्स  ज़कात  नहीं  ले  सकता.
अगरचे  बे  रोज़गार  हो, या ऐसी औरत  जो बेवा  हो.

निचे  लिखे  हुवे  हज़रात  को  ज़कात  दे  सकते  है.

१. हक़ीक़ी माँ  शरीक, बाप शरीक, दूध  शरीक  भाई -बहन  और  इन  की  अवलाद

२. अपने  चाचा, फूफी  और  इन  की  अवलाद

३. अपने  मामू, खाला  और  इन  की  अवलाद

४. अपने  सौतेले  माँ  बाप  और  उन  की  अवलाद

५. अपने  खुसर-ससरे, सास  और उन  की  अवलाद

6. मालदार  अवलाद  के  वालिदैन  जो  के  मुस्तहिके  ज़कात  हो

7. मालदार  की  बालिग  अवलाद  जो  के  मुस्तहिके  ज़कात  हो 

8. मालदार  की  बीवी  जो  के  मुस्तहिके  ज़कात  हो

9. मालदार  बीवी  का  शोहर  जो  के  मुस्तहिके  ज़कात  हो 

10. अपने  दामाद, बहु 

11. शागिर्द  का  उस्ताज़  को  और  उस्ताज़  का  शागिर्द  को

12. शोहर  का अपनी  बीवी  की  ऐसी  अवलाद  को  देना  जो  उस  के  अगले  शोहर  से  हो 

13. बीवी  का  अपने  शोहर  की  ऐसी  अवलाद  को  देना  जो  उस  की  पहली  बीवी  से  हो

14, मुसाफिर  को  जब  के  सफर  में  उस  के  पास  माल  न  हो  (इस  ज़माने  में  एटीएम  का  कार्ड  और  उस  से  निकलने  की  क़ुदरत  न  हो) अगरचे  उस  के  पास  घर  पर  निसाब  के  बक़द्र  माल  हो.

15. ना बालिग  मुहताज  जब  के  उस  का  बाप  साहिबे  निसाब  न  हो  लेकिन  माँ  साहिबे  निसाब  हो

17. किसी  की  १०,०००  (दस  हज़ार ) की  आमदनी  है  लेकिन  खर्च  १२,०००  (बारह  हज़ार ) का  है  अगरचे  जाती  मकान  और  गाड़ी  भी  हो

18. जिस  शख्स  की  आमदनी  काफी  है  लेकिन  मक़रूज़  हो, क़र्ज़  किसी  तरह  अदा  न  कर  सकता  हो.

ये  तमाम  हज़रात  मुस्तहिके  ज़कात  हो  तो  इन  को  ज़कात  दी  जा  सकती  है  और  उन  को  ये  भी  बतलाना  ज़रूरी  नहीं  के  ये  ज़कात  है. दिल  में  निय्यत  करना  काफी  है.

अहसनुल  फतवा  ४/२५४ मसाइल ज़कात  (रफत) शफा  २८४,२८५
واللہ اعلم

✏मुफ़्ती इमरान इस्माइल मेमन हनफ़ी गुफिर लहू

🕌उस्ताज़े दारुल उलूम रामपुरा सूरत गुजरात इंडिया

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