Tuesday, April 25, 2017

२७  रजब  के  रोज़े  का  हुक्म

*२७  रजब  के  रोज़े  का  हुक्म*

⭕आज  का  सवाल  नंबर  ९९१⭕

२७  रजब   का  रोज़ा  रखना  केसा  है  ?
इस  बारे  में  फ़ज़ीलत  की  बाज़  रिवायत  भी  मशहूर  है  जो  बाज़  बुज़ुर्गों  की  किताब  में  भी  है.

🔴आज  का  जवाब🔴

ख़ास  कर  के  २७  वी  रजब  ही  का  रोज़ा  ज़यादा  फ़ज़ीलत  वाला  समझ  कर  या  १०००  रोज़े  के  बराबर  समझ  कर, आशूरह  के  रोज़े  की  तरह  सुन्नत  मुस्तहब  समझकर , रखना  जाइज़ नहीं, इस  के  रखने  का  ख़ास  एहतमाम  करना  बिदअत  है.

ना हुज़ूर  सलल्लाहु  अलैहि  वसल्लम  ने  इस  का  एहतमाम  किया,
ना  सहाबा  रदी. ने, ना  ताबीइन  ने, ना ताबेअ  ताबीइन  रह. ने, ना  चारों  इमामों  रह. ने  इस  का खास  एहतमाम  किया.

इस  के  बारे  में  जो  अहादीस  बयान की  जाती  है  उन  को  रईसुल  मुहद्दिसीन  देवबंदी  और  बरेलवी  हज़रत के  मुअतमाद और  माने  हुवे  हज़रत  शाह  अब्दुल  हक़  मुहद्दिसे  देहलवी  रहमतुल्लाहि  अलैहि  ने  अपनी  महीनो  के  बारे  में  किताब.
(मा सबत  मिनससुन्नह सफ़ा ७४) में  मौज़ूअ -मनघडत  बनावटी  या  इंतिहाई  ज़ईफ़  क़रार  दिया  है.

अल्लम्ह  सुयूती  रहमतुल्लाहि  अलैहि  ने
(अल  लालियूल मसनूअ  फी  अहादिसिल  मव्जूआ  २/९७) में  इस  के  फ़ज़ाइल  मनघडत  क़रार  दिए  है,

मुल्ला  अली  कारी  रहमतुल्लाहि  अलैहि  ने  भी  माज़ूर  फ़रमाया  है.

📗अल मसनूअ  फी  अहदीसिल  मौज़ूअ  साफा  २९१.

हज़रत उमर रदियल्लाहु  अन्हु   बा क़ाइदह गश्त  करते  थे, और  जिस  ने  रजब  को  ख़ास  रोज़ा  रखा  हो  उस  के  सामने  खाना  रख  कर  रोज़ा  तुड़वाते  थे  और  फरमाते  थे  रजब, रजब  क्या  है ! अहले  जाहिलियत  उस  की  ताज़ीम  करते  थे, इस्लाम  आया  तो  उस  की  ताज़ीम  छोड़  दी  गयी.

📗मजमउज़  जवाईद ३/१९४
📘इस्लाही  ख़ुत्बाट  जिल्द  १  माहे  रजब

واللہ اعلم

📗शैखुल  इस्लाम  हज़रत  मुफ़्ती  तक़ी उस्मानी  डा.ब. के  इस्लाही  ख़ुत्बात  के  बयान  का  खुलासा

✏मुफ़्ती इमरान इस्माइल मेमन हनफ़ी गुफिर लहू

🕌उस्ताज़े दारुल उलूम रामपुरा सूरत गुजरात इंडिया

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