*तलाक़ और हलाले का सबूत क़ुरआन से*
⭕आज का सवाल नंबर ९७८⭕
तलाक़ और हलाले का सुबूत क़ुरान से नहीं है, क्या ये बात सहीह है ?
🔵 आज का जवाब🔵
حامدا و مصلیا و مسلما
ये बात बिलकुल गलत है, जो ऐसा कहते है वह आलीम नहीं होते बल्कि शरीअत से जाहिल होते है. तलाक़ और हलालह का सुबूत क़ुरआन से है जो निचे लिखा जाता है.
सूरह ए बक़रह की आयत नंबर २२९ में अल्लाह ताला फरमाते है के
“الطلاق مرتان فامساک بمعروف او تسریح باحسان”
नोट:
ब्रैकेट बहार तर्जमा और ब्रैकेट में मतलब लिखा जाता है.
“तलाक़ दो (२) मरतबा की है फिर” (दो मरतबा तलाक़ देने के बाद दो इख़्तियार हैं) “चाहे रुजूअ कर के औरत को क़ाइदह के मुताबिक़ रख ले चाहे” (रुजूअ न करे, इद्दत पूरी होने दे और इस तरह) “अच्छे तरीक़ह से उस को छोड़ दे”
📘(सूरह ए बक़रह आयत नंबर.२२९)
फिर आगे चार (४) लकीर के बाद अल्लाह ने फ़रमाया,
“فان طلقھا فلا تحل لہ من بعد حتی تنکح زوجا غیرہ۔فان طلقھا فلا جناح علیھما ان یتراجعا ان ظنا ان یقیما حدود اللہ۔”
“फिर अगर (दो तलाक़ के बाद) उस औरत को (तीसरी) तलाक़ भी दी तो फिर वह औरत (उस तीसरी तलाक़ ) बाद उस शख्स के लिए हलाल न होगी जब तक के वह उस शोहर के सिवा दूसरे शख्स के साथ” (इद्दत के बाद) निकाह न करे (और जबतक सोहबत के हुक़ूक़े ज़वजियत अदा न करे) फिर अगर उस को तलाक़ दे दूसरा शोहर (और उस की इद्दत गुज़र जाये) तो उन दोनों पर उस में कोई गुनाह नहीं के दोबारह आपस में निकाह कर के फिर मिल जाये बशर्ते दोनों को अपने ऊपर ये भरोसा हो के आइन्दाह खुदा के क़ानून को क़ाइम रखेंगे.
(सूरह ए बक़रह आयत २३०)
📗मा'रिफुल क़ुरान १ /५५४.
तर्जमाह हकीमुल उम्मत رحمت اللہ علیہ
*नोट*
क़ुरान की मसाइल वाली आयात को अच्छी तरह समझ ने के लिए क़ुरान का सिर्फ तर्जमा काफी नहीं है, बल्कि हदीस शरीफ की रौशनी में उस का सहीह मतलब समझा जाता है, इसलिए तलाक़ की हदीस कल पेश की जाएगी ان شاء اللہ تعالی
واللہ اعلم
✏मुफ़्ती इमरान इस्माइल मेमन हनफ़ी गुफिर लहू
🕌उस्ताज़े दारुल उलूम रामपुरा सूरत गुजरात इंडिया
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