*तलाक़ का फ़ायदा*
⭕आज का सवाल नंबर ९८५⭕
इस्लाम में तलाक़ के क़ानून की क्या हिकमत और मस्लिहत है ? ब'आज भारतीय भाई कहते हैं के तलाक़ का क़ानून ख़त्म कर दिया जाये तो क्या हरज है ? उन को क्या जवाब दिया जाये ?
🔵जवाब🔵
*तलाक़ की हिकमत*
निकाह एक मुआहदाह (एग्रीमेंट) है, शोहर की तरफ से इस बात का के वह बीवी का महार, उस की तमाम ज़रूरियात का खर्चा और उस के साथ अच्छा सुलूक करेगा,
और औरत की तरफ से इस बात का के वह बदकारी (गन्दा काम) नहीं करेगी, शोहर के हुक़ूक़ अदा करेगी,
अगर दोनों में से कोई भी अपना एग्रीमेंट (शर्तें) पूरी ना करे तो दुन्या के दूसरे मुआमलों (लेनदेन) की तरह ये मुआमलाह भी फ़स्ख़ (तोड़) देने के क़ाबिल हो जाता है, इस तोड़ने के लिए सुलह की सब कोशिश के बाद मर्द को तलाक़ देने का इख़्तियार और औरत को इस्लामी क़ाज़ी (जज) के पास जाकर निकाह तुड़वाने का इख़्तियार दिया है.
औरत शोहर के या शोहर बीवी के हुक़ूक़ अदा ना करे, मसलन दोनों में से कोई गंदे काम, बदकारी करने लगे तो उस की मिसाल बदन के उस हिस्से और दांत की तरह है जो सड़ गया हो और उस की वजह से पुरे जिस्म को तकलीफ हो रही हो, तो उस हिस्से को काट देना कोई भी बुरा नहीं समझता, बल्कि ज़रूरी समझता है,
इसी तरह ना फरमान (गन्दा काम करनेवाली ) औरत को निकाह के बंधन से काट देना बुरा नहीं.
📗(अहकामे इस्लाम अक़्ल की नज़र में सफ़ा २१८, २१९ का खुलासा )
इस्लाम में तलाक़ ना होती तो निचे दी गयी खराबियां और नुक़सानात पैदा होती जो दूसरी क़ौमो में पैदा हो चुकी है.
*तलाक़ का क़ानून ना होने के नुक़सानात*
१. अगर शोहर को बीवी से या बीवी को शोहर से इत्मीनान (संतोष) ना मिलता, और तलाक़ भी ना होती, तो शोहर दूसरी औरतों से और बीवी दूसरे मर्दों से गलत ता'ल्लुक़ात पैदा करते.
२. दोनों में से कोई बे वक़ूफ़ (कम अक़्ल) होता और एक को दूसरे के किसी काम से इत्मीनान (सटिस्फैक्शन) ना होता, और तलाक़ ना होती, तो सब कामो में और हुक़ूक़ की अदायगी में नुकसान महसूस करते रहते.
३. एक दूसरे से ना बनती, और तलाक़ ना होती, तो उस से जान छुड़ाने के लिए उस पर ज़ुल्म करता, ताके वो ख़ुदकुशी (आत्मा हत्या ) करने पर मजबूर हो जाये.
४. अनबन होने की सूरत में, तलाक़ ना होती, तो उस बीवी को उस के मायके (उस के माँ बाप के घर) भेज देता और उसे अपने पास ना बुलाता, इस तरह उसे लटका कर उस की ज़िन्दगी बरबाद कर देता. ताके ना तो खुद उसको बुलाये और ना ही वो औरत किसी दूसरे से शादी कर सके.
५. अगर सास को बहु का मिजाज़ पसंद ना आता, और तलाक़ ना होती, तो बहु को जला दिया जाता या गैस खुला रखकर हादसे का केस बना दिया जाता. जैसे आज कल रोज़ाना अख़बारों में आता है.
६. बीवी को शोहर का, या शोहर को बीवी का मिजाज़ पसंद ही ना आता, और तलाक़ ना होती तो, दोनों की पूरी ज़िन्दगी झगडे में गुज़रती या खुदखुशी (सुसाइड) कर लेते.
७. अगर शोहर नामर्द होता यानी बीवी की प्राइवेट (जिस्मानी)
ज़रूरत पूरी न कर सकता और इलाज भी फायदेमंद ना होता, और तलाक़ न होती तो , भी बीवी दूसरे मर्दों से ना जाइज़ ता'ल्लुक़ात पैदा कर लेती.
८. अगर कोई ला इलाज (जिसका इलाज न हो ) जिस्मानी बीमारी होती या अवलाद किसी इलाज से भी ना होती, और तलाक़ भी न होती, तो ये जोड़ा सगी (हक़ीक़ी, अपने खुद की) अवलाद से महरूम होता और बेचें रहता.
९. अगर तलाक़ न होती तो, ऐसा झगड़ा होने पर जिस में तलाक़ होने के खतरे की वजह से सुलह और जोड़ हो सकता हो, फिर भी कोर्ट से तलाक़ हासिल करने के लिए मुक़द्दमा दाखिल करने के बाद सुलह न हो सकती, क्यों के केस को वापस खींचने में लोग अपनी बे इज़्ज़ती समझते है. एक तहक़ीक़ (सर्वे) से पता चला के तलाक़ लेने कोर्ट में जाने के बाद ऐसे मामूली झगडे गैर मुस्लिम मिया बीवी के मुसलमानों से कई गुना ज़यादा केस पेंडिंग है जिस में आसानी से सुलह हो सकती थी.
१०. कभी मियां बीवी दोनों बद अख़लाक़ (बद करैक्टर) होने की वजह से एक दूसरे से नफरत करते है, और झगड़ा मामूली बातों पर बार बार होता रहता, अगर तलाक़ न होती तो, एक साथ में ज़िन्दगी गुज़ारना मुश्किल और तकलीफ देह हो जाता.
११. दोनों घर चलाने में तंगी महसूस करते, मसलन मर्द जितना खर्च देता है औरत के लिए ना काफी है, और औरत जितना मांगती है मर्द के बस का नहीं है, तो तलाक़ न होती तो, दोनों चोरी करने पर या औरत जिस्म बेचने या नौकरी, तिजारत करने पर मजबूर हो जाती, और इस्लाम ने औरत पर कमाने की ज़िम्मेदारी भी नहीं डाली है उस को घर की मालिकाह (रानी, क्वीन) बनाया है.
१२. शादी बाद मर्द को कोई दूसरी औरत पसंद आ रही है, या औरत को कोई और मर्द पसंद आ रहा है और दिल उधर ही लग जाये और मिया बीवी का एक का दूसरे से दिल ही उठ जाये और एक दूसरे के हुक़ूक़ अदा करने में कोताही होने लगे तो तलाक़ न होती तो दोनों गलत ता'ल्लुक़ात पैदा कर लेते या पूरी ज़िन्दगी पसन्दीदाह पार्टनर के लिए बेचैन रहते.
*नॉट*
यूँ न कहे हम कोर्ट से तलाक़ ले लेंगे कोर्ट से तलाक़ लेने में हज़ारों रुपये का खर्च और फैसला आते आते सालों साल निकल जाते है तब तक ऊपर लिखी गई अक्सर खराबियां पैदा हो चुकी होती हैं.
📘रहमतुल्लाहि वासिआ शरहे हुज्जतुल्लाही बालिग़ाह ९ /१३९ से माखूज़
📘किताबुल मसाइल 10/93 से माखूज़
واللہ اعلم
बा इज़ाफह ए कसीरा अज़ अहकर
✏मुफ़्ती इमरान इस्माइल मेमन हनफ़ी गुफिर लहू
🕌उस्ताज़े दारुल उलूम रामपुरा सूरत गुजरात इंडिया.
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