Thursday, April 20, 2017

तीन (३) तलाक़  की  हिकमत

*तीन (३) तलाक़  की  हिकमत*

⭕आज  का  सवाल  नंबर  ९८६⭕

इस्लामी  शरीअत  में  तीन  ही  तलाक़  क्यों  है ?
तीन  से  ज़यादा  या  तीन  से  कम  क्यों  नहीं  है ?
तीन  तलाक़  में  बीवी  हराम  क्यों  हो  जाती  है ?

🔵 आज  का  जवाब🔵

حامدا و مصلیا و مسلما

अरब  के  जाहिलियत  के  ज़माने  में  तलाक़  की  कोई  हद  तय  ना  थी,   लोग  जितनी  चाहे  तलाक़  देते  थे.  और  उस  के  बाद बीवी  से  रुजूअ  (निकाह  में  वापस) कर  लेते  थे. क्यों  के  इद्दत  ख़त्म  हो  तो  निकाह  ख़त्म  हो  जाता  है. मसलन  चौथी  मरतबाह  भी  तलाक़  दी, और  इद्दत  (तीन  हैज़  या  तीन  महीने) पूरी  हो  उस  के  पहले  ही  वापस  रुजूअ  (निकाह  में  ज़बान  से  बोलकर  या  हाथ  से  छूकर  वापस) कर  लेते  थे, इस  तरह  ज़ालिम  शोहर  से  बीवी  को  छुटकारा  ना मिलता  था, दसयों  और  बिसयों  मर्तबा  ऐसा  करते  थे, अगर   बीवी  चली  भी  जाती  तो  बीवी  को  समझा  पता कर  मीठी  मीठी  बातें  कर  के  वापस  बुला  लेते  थे, गोया  तलाक़  को  खेल  बना  रखा  था.

इसलिए  हज़रत  पैगमबर  صل اللہ علیہ وسلم ने  इस  ज़ुल्म  को  और  तमाशे  को  ख़त्म  करने  के  लिए  औरतें  को  इंसाफ  दिलाने  के  लिए  फ़रमाया  : तलाक़  ज़यादा  से  ज़यादा  तीन  ही  है,  तीन  से  बीवी  हराम  हो  जाएगी,  ताके  लोग  तीसरी  तलाक़  सोच  समझ  कर  दे,  वापस  न  लाने  का   पक्का  इरादह  हो,  वाक़ई  बीवी  से  उस  की  कमी  कोताही  की  वजह  से  नफरत  हो  चुकी  है,  तो ही  तीन  तलाक़  दे,  क्यों  के अब  सिर्फ  रुजूअ  करना  या  सिर्फ  निकाह  पढ़ना  काफी  नहीं,  बल्कि  उस  बीवी  को  वापस  लाना  हो  तो  तलाक़  देने  की  शर्त  किये  बगैर  वह  किसी  से  निकाह  करे,  और  बीवी  का  जिस्मानी  हक़  (सोहबत -सम्भोग) से  अदा  करे,  और  दूसरा  शोहर  जब  चाहे  अपनी  मर्ज़ी  से  तलाक़  दे,  या  न  भी  दे,  या  उस  का  इन्तिक़ाल  हो  जाये,  और  उस  के  बाद,  उस  की  इद्दत  ख़त्म  होने  बाद  बीवी  अपनी  मर्ज़ी  से  चाहे  तो  ही  वापस  तेरे  निकाह  में  आएगी. अब  दूसरी  बार  निकाह  के  महर के  रुपये, शादी  का  पूरा  खर्च  तुझे  ही  करना  पड़ेगा,  अब  वापस  लाना  आसान  नहीं. बल्कि  बहुत  मुश्किल  है,  इसलिए  बहोत  सोच  समझकर  तलाक़  देना.

*3⃣तीन  से  कम क्यों  नहीं ?*

जमा (परुलर बहुवचन) में  कम से  कम  तीन  होता  है. ज़यादा  की  तो  हद  नहीं,  इसलिए  तीन  ही  से  हद बंदी (लिमिट)  कर  दी, 
*अक़ल का  तक़ाज़ा  ये  था  के  एक  ही  तलाक़  से  निकाह  ख़त्म  हो  जाता,  लेकिन  उस  में  सोचने  का  मवका  न  मिलता,  बाज़  लोगों  को  नेअमत  की  क़दर  नेअमत  जाने  के  बाद  होती  है, इसलिए  एक  से  ज़यादा  तलाक़  का  तरीक़ह शरीअत  ने  दिया  है
इस  तरह  के  पहली  तलाक़  निकाह  के  ख़त्म  करने  की  तलब (एहतेमाम परेटिकल  इरादह)  के  लिए,  दूसरी  उस  इरादह के  तकमील  यानि  उस  को  पक्का  बताने  के  लिए  है,  और  तीसरी  में तो इख़्तियार हाथ से जाता रहता है,
इसलिए  निकाह  ही  ख़त्म हो जाता है.

📗रहमतुल्लाहे  वसिआ  शरहे  हुज्जतुल्लाहे  बालिगाह से  माखूज़.

واللہ اعلم

✏मुफ़्ती इमरान इस्माइल मेमन हनफ़ी गुफिर लहू

🕌उस्ताज़े दारुल उलूम रामपुरा सूरत गुजरात इंडिया

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