⭕आज का सवाल नंबर ९८९⭕
शबे मेराज में इबादत करने में क्या हरज है ?
🔵 आज का जवाब🔵
حامدا و مصلیا و مسلما
शबे मेराज की इबादत
*वह रात अज़ीमुशशान थी*
और अगर बिल फ़र्ज़ ये तस्लीम भी कर लिया जाये के आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम २७ रजब ही को मेराज तशरीफ़ ले गए थे, जिस में ये अज़ीमुशशान वाक़िअ पेश आया और जिसमे अल्लाह ताला ने नबी ए करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को ये मक़ाम अता फ़रमाया और अपनी बारगाह में हाज़री का शरफ़ बख्शा , और उम्मत के लिए नमाज़ों का तोहफा भेजा, बेशक वो रात बड़ी अज़ीमुश शान थी, किसी मुस्लमान को उसकी अज़मत में क्या शुबह हो सकता है ?
*आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ज़िन्दगी में १८ मर्तबा शब् ए मेराज की तारिख आयी लेकिन*
ये वाक़िआ सं ५ नबवी में पेश आया यानि हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के नबी बनने के पांचवे साल ये शब् ए मेराज, जिसका मतलब ये है के इस वाक़िआ के बाद १८ साल तक आप दुन्या में तशरीफ़ फरमा रहे, लेकिन इन १८ साल के दौरान ये कही साबित नहीं के आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने शब् ए मेराज के बारे में कोई ख़ास हुकुम दिया हो, या उस को मनाने का एहतेमाम फ़रमाया हो, या उसके बारे में ये फ़रमाया हो के उस रात में शब् ए क़द्र की तरह जागना ज़्यादा अजर ओ सवाब का बाइस है, ना तो आप का ऐसा कोई इरशाद साबित है और ना आप के ज़माने में इस रात में जागने का एहतेमाम साबित है, ना खुद हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम जागे, और ना सहाबा ए किराम रज़ि अल्लाहु अन्हु को इस की ताकीद की और ना सहाबा ए किराम रज़ि अल्लाहु अन्हु ने अपने तौर पर इसका एहतेमाम फ़रमाया.
*बाक़ी कल इंशा अल्लाह*
📗शैखुल इस्लाम हज़रात मुफ़्ती तक़ी उस्मानी डा.ब. के इस्लाही ख़ुत्बात के बयान का खुलासा
واللہ اعلم
✏मुफ़्ती इमरान इस्माइल मेमन हनफ़ी गुफिर लहू
🕌उस्ताज़े दारुल उलूम रामपुरा सूरत गुजरात इंडिया
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