*क्या ब'यत होना ज़रूरी है ?*
⭕आज का सवाल न.१२५६⭕
क्या ब'यत होना (मुरीद होना) ज़रूरी है ? अगर ब'यत न हो सके तो क्या कोई गुनाह होगा ?
🔵जवाब🔵
حامدا و مصلیا و مسلما
फकीहुल उम्मत हज़रत मुफ़्ती महमूद हसन गंगोही रहमतुल्लाहि अलैहि लिखते हैं के
असल ये है के अक़ाइदे हक़्क़ अख़लाक़ी फ़ज़ीलह (बेहतरीन) अमले सालेहा का इख़्तियार करना ज़रूरी है और अक़ाइदे बातीलाह (गलत) अख़लाक़ी रज़ीलह (बुरे) अमले फ़ासीदह से हिफाज़त ज़रुरी है, चाहे ब'यत के ज़रिये हो या इल्म हासिल करने से हो या सुह्बते अकाबिर से (या दावतों तब्लीग में निकलने से हो) लेकिन तजरबाह और मुशहीदह (आँखों से देखा जाना) ये है के उमूमन (अक्सर) बगैर शैख़े मुहक़िक़ (कामिल पीर) से ब'यत होने के ये मक़सद पूरा हासिल नहीं होता (इसलिए ब'यत होना ज़रूरी है)
📗फतावा महमूदिया दाभेल जिल्द ४ सफा ३५८.
و الله اعلم بالصواب
✍🏻मुफ़्ती इमरान इस्माइल मेमन
🕌उस्ताज़े दारुल उलूम रामपुरा, सूरत, गुजरात, इंडिया.
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