*तीन तलाक़ की हिकमत*
⭕आज का सवाल नंबर १४२४⭕
इस्लामी शरीअत में तीन ही तलाक़ क्यूँ है ? तीन से ज़यादा या तीन से कम क्यूँ नहीं है ?
तीन तलाक़ में बीवी हराम क्यूँ हो जाती है ?
🔵 आज का जवाब🔵
حامدا و مصلیا و مسلما
अरब के जाहिलियत के ज़माने में तलाक़ की कोई हद तय न थी, लोग जितनी चाहे तलाक़ देते थे, और उस के बाद बीवी से रुजूअ (निकाह में वापस) कर लेते, कयूं के इद्दत ख़त्म हो तो निक़ाह ख़त्म हो जाता है। मसलन चौथी मरतबाह भी तलाक़ दी और इद्दत (तिन हैज़ या तिन महीने) पूरी हो उस के पहले ही वापस रुजूअ (निकाह में ज़बान से बोलकर या हाथ से छूकर वापस) कर लेते थे, इस तरह ज़ालिम शोहर से बीवी को छुटकारा न मिलता था, दसयों और बिसयों मर्तबा ऐसा करते थे, अगर बीवी चली भी जाती तो बीवी को समझा पताकर मीठी मीठी बातें कर के वापस बुला लेते थे, गोया तलाक़ को खेल बना रखा था।
इस्लिये हज़रात पैग़मबर صل اللہ علیہ وسلم ने इस ज़ुल्म को और तमाशे को ख़त्म करने के लिए फ़रमाया तलाक़ ज़यादा से ज़यादा तीन ही है, तीन से बीवी हराम हो जाएगी, ताके लोग तीसरी तलाक सोच समझ कर दे, वापस न लेने का पक्का इरादह हो, वाक़ई बीवी से उस की कमी कोताही की वजह से नफरत हो चुकी है, तोहि तीन तलाक दे, क्यूँ के अब सिर्फ रुजूअ करना या सिर्फ निक़ाह पढ़ना काफी नहीं, बल्के उस बीवी को वापस लाना हो तो तलाक़ देने की शरत किये बगैर वह किसी से निकाह करे और बीवी का जिस्मानी हक़ (सोहबत-सम्भोग) से अदा करे और दूसरा शोहर जब चाहे अपनी मर्ज़ी से तलाक दे या न भी दे, या उस का इन्तिक़ाल हो जाये और उस की बाद उस की इद्दत ख़त्म होने बाद बीवी अपनी मर्ज़ी से चाहे तो ही वापस तेरे निक़ाह में आएगी।
जब दूसरी बार निक़ाह के महर के रूपीए, शादी का पूरा खर्च तुझे ही करना पड़ेगा, अब वापस लाना आसान नहि। इस्लिये बहुत सोच समझकर तलाक़ देना।
जमा-बहु वचन में कम से कम तीन होता है। पहली तलाक़ निक़ाह के ख़त्म करने की तलब एल्टीमेटम के लिए, दूसरी उस ईरादह की तकमील यानि उस को पक्का बताने के लिए है, और तीसरी तो बहुत हो गई, इसलिए निकाह ही खत्म।
📘रहमतुल्लाही वसिआ शरहे हुज्जतुलाहे बलिगाह से माखूज।
و الله اعلم بالصواب
✍🏻मुफ़्ती इमरान इस्माइल मेमन
🕌उस्ताज़े दारुल उलूम रामपुरा, सूरत, गुजरात, इंडिया.
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