*खीर पूरी की हकीकत और कुछ दलील के जवाबात*
🛑आज का सवाल नंबर १९२०🛑
खीर पूरी की शुरुआत किसने की और कब हुयी ?बरेलवी कहते हैं के इसमें शियों से मुशाबेहत नहीं है कारे खैर हम शुरु करें और उसे दूसरा कोई फ़िरक़ा अपना ले तो उस कारे खैर को नहीं छोड़ा जायेगा शियों के खीर पूरी करने में और सुन्नियों के करने में कई तरीके से फ़र्क़ है.हज़रत जाफर सादिक़ र.आ. की वफ़ात क्या रजब में हुयी है ?
🔵जवाब🔵
२२ रजब या १५ रजब को न हज़रत जाफर सादिक़ रहमतुल्लाहि की वफ़ात हुयी है न विलादत.इस दिन शियों के सब से बड़े दुश्मन हज़रत अमीरे मुआवियाह रदियल्लाहु अन्हु की वफ़ात हुयी है.और हज़रात जफ़र सादिक़ रहमतुल्लाहि अलैहि विलादत (पैदाइश) ८ रमज़ान ८० या ८३ हिजरी में हुयी (अगर रजब का महीना हो तो अहले बरेलवी तारिख की किताब का हवाला पेश करे.)
📘तारीखे तबरी सफ़्हा २३९ जिल्द ४
बेरूत की छपी
खीर कुंडे की शुरुआत ही शियों ने की है न के सुन्नियों ने.मुशाबेहत उस वक़्त न होती जब इसकी शुरुआत सुन्नी करते और फिर इसको शिया शुरुआ करते लेकिन मुआमला उल्टा है के हज़रात अमीरे मुआवियाह रदियल्लाहु अन्हु जो शिया के सख्त मुखालिफ थे और शियों को उन की शरारत पर क़तल करते थे और सजा देते थे उनकी वफ़ात पर खुशिया मनाई और छुप कर खीर पूरी बनायीं और छुप कर खाई और सुन्नियों को पता चला तो इसको हज़रात जाफर इ सादिक़ की तरफ चालाकी से मंसूब कर दिया.
*मज़ीद दलील*
१. इस रस्म में आज तक इसकी पाबन्दी है के कुंडों की पूरियां किसी बंद (आसमान नज़र न आये) ऐसी जगह बनायीं जाती है.
२. बनने के बाद बड़े एहतमाम से ढँककर रखा जाता है.
३. फातिहा अँधेरी जगह में दिया जाता है.
४. परदे के साथ उसे खिलाया जाता हैः
५. हज़रात जाफर सादिक़ के साथ शिया हज़रात की जगह इमाम का लफ्ज़ और अलैहिस सलाम ईस्तिअमाल करते हैं उनकी मुशाबेहत में बरेलवी भी इमाम और अलैहिस सलाम कहते हैं जिस तरह कहने में इत्तिबा करते हैं बोलने में भी शियों की मुशाबेहत और इत्तिबा करते हैँ
६. हज़रात जाफर सादिक़ रहमतुल्लाहि अलैहि सहाबी नहीं है बल्कि वाली है अवलिया इ किराम बहोत से हैं उसमे हज़रात जाफर सादिक़ की ही क्या खुसीसियत के उनके ही नाम पर शुरुआत की जाती है ?सहाबा रदियल्लाहु अन्हुम की क्यों नहीं करते हैं?
७. फातिहा के बाद'या अली रदियल्लाहु अन्हु का नारा लगाया जाता है या अबू बक्र या उमर या उस्मान का नारा नहीं लगाया जाता? क्यों के सिर्फ अली रदियल्लाहु अन्हु को ही मानना और दूसरे ३ खुलफ़ा को न मानना शियों का तरीकाः है.और खीरपुरी शिया भी इसी तरह करते हैं उनसे पूरी मुशाबेहत होती है. लिहाज़ा इस से बचा जाये.
८.खीर पूरी को ज़रूरी समझ कर किया जाता है नमाज़ नही पढ़ेंगे लेकिन खीर पूरी ज़रूर करेंगे पैसे न हो तो क़र्ज़ लेकर भी करना ज़रूरी समझ ने की खुली निशानी है
✏ मुफ़्ती इमरान इस्माईल मेमन सूरत गुजरात भारत
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