Sunday, April 29, 2018

शबे  बरात.. में  इज्तिमाई  इबादत

*शबे  बरात.. में  इज्तिमाई  इबादत*

⭕आज  का  सवाल  नंबर  १३४१⭕

मख़सूस  रातों  में  नफली  इबादत  मस्जिद  में  नहीं  करना  चाहिए  बल्कि  घर  में  ही  करनी  चाहिए  क्या  ये  बात  सहीह  है ?

🔵 आज  का  जवाब🔵

حامدا و مصلیا و مسلما

🔻मस्जिद  में  इबादत  करने  की  एक  सूरत  तो  ये  है  के  मगरिब  या  ईशा  की  नमाज़  पढ़ने  आया  था  तो  उस  साथ  में  बड़ी  रात  की  नफली  इबादत  भी  ज़िमनन  कर  ली  तो  इस  में  कोई  हरज  नहीं. हाँ  इन  नफली  इबादत  को  घर  में  करता  तो  बेहतर  और  ज़यादा  सवाब  था.

🔺क्यों के हुज़ूर  صل اللہ علیہ وسلم तहज्जुद  और  नमाज़  बाद  की  सुन्नत  नफ़्लें  घर  में  पढ़ते  थे. इस  के  बा  वजूद  के  घर  तंग  था, चिराग   तक  का  इंतिज़ाम  नहीं  था, आप  صل اللہ علیہ وسلم वसल्लम  नमाज़  में  सजदह  करते  तो  हज़रत  आइशा  رضی اللہ عنہا के  पैर  को  हुज़ूर  صل اللہ علیہ وسلم छुटे  थे, ताके  वह  अपने  पैर  सुकड़  ले  और  आप  सजदह  कर  सके,  और  आप जब  सजदह  से  खड़े  होते  तो  हज़रत आइशा  रदिअल्लहु  अन्हा  अपने  पेर  वापस  फैला  लेती,  जगा  की  इतनी  तंगी  और  मस्जिदे  नबवी  जहाँ  पचास  हज़ार  नमाज़  का  सवाब,  इतनी  क़रीब  के  पांव  बहार  निकालो  तो  मस्जिदे  नबवी  में  पड़े. फिर  भी  हज़ूर  صل اللہ علیہ وسلم ने  नफली  इबादत  घर  ही  में  अदा   फरमाते

🔻दूसरी  सूरत  ये  है  अपनी  ज़रुरियात  से  फारिग  होकर  खास  कर  के  मस्जिद  में  इस  नफली  इबादत  के  लिए  आना  या  भाइयों  और  दोस्तों  को  जमा  कर  के  लाना  इसतरह  एहतमाम  के  साथ  लोगों  का  खास  कर  के  मस्जिद  में  जमा  हो  कर  इबादत  करना  हुज़ूर  صل اللہ علیہ وسلم के  तरीकाः  के  खिलाफ, बिदअत और  शरीअत  पर  ज़यादती  है

🔺बाज़  लोग  उज़्र  करते  है  के  घर  में  नींद  आती  है  या  बच्चे  रोते  है,  दिल  नहीं  लगता  और  ज़यादा   इबादत  नहीं  होती.
तो  इस  का  जवाब  ये  है  के  ख़ुशूअ  और  ख़ुज़ूअ  नाम  है  सुन्नत  की  इत्तिबा  का. जिस  ने  हुज़ूर  صل اللہ علیہ وسلم के  तरीका  के  मुताबिक़  इबादत  कर  ली  तो  उसे  ख़ुशूअ  हासिल  है.

🔻अगर  कोई  लाख  आवो  जारी  करे  लेकिन  हुज़ूर  صل اللہ علیہ وسلم के  तरीका पर  नहीं  तो  वह  शरीअत  की  निगाह  में  उस  को  ख़ुशूअ  नहीं  कहा  जायेगा.

🔺और  अल्लाह  के  नज़दीक  इबादत  की  कम्मीयत -कॉनटीटी मक़सूद  नहीं  बल्कि  कैफियत -कोलेटी  मक़सूद  है.
घर  में  सुन्नत  के  मुताबिक़  जितनी  देर  भी  इबादत  हो  सके  करे,  तबियत  उकता  जाये  और  नींद आये  तो  सो  जाये  ये  बात  हदीस  से  साबित  है. अल्लाह  के  साथ  तन्हाई  में  दुआ  के  रजो  नियाज़  के  चंद लम्हे  मजमे  और  भीड़  में  पूरी  रात  इबादत  से  बेहतर  है.

📗मसाइल  शबे  बारात  व  शबे  क़द्र  रफ़ाति सफ़ा ६३  से  ६५  का  खुलासा  बा  हवाला
📕अहसनुल फतावा १ /३७३

واللہ اعلم

✏मुफ़्ती इमरान इस्माइल मेमन हनफ़ी गुफिर लहू

🕌उस्ताज़े दारुल उलूम रामपुरा सूरत गुजरात इंडिया

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