*सुरह-ए-क़द्र का वज़ीफ़ा*
🔴आज का सवाल नंबर १३५८🔴
रमजान की चाँद रात को मगरिब की नमाज़ की बाद २१ मर्तबा सुरह-ए-क़द्र (इन्ना-अन्ज़लना हु) पढ़ो. पूरे साल रिज़्क़ आपके पीछे इस तरह से दौड़ेगा जैसे पानी नसाईब की तरफ दौड़ता है. इंशा अल्लाह.
क्या ये फ़ज़ीलत सहीह है? ये वज़ीफ़ा पढ़ सकते है?
🔵जवाब🔵
حامدا و مصلیا و مسلما
ऐसी चीज़ें अमलियात के काबील से होती है, बाज़ हज़रात का तजरबाह होता है, क़ुरआन की तासीर से इंकार नहीं कर सकते है, ये फ़ज़ीलत हदीस से साबित नहीं, कोई पढ़ना चाहे तो बतौर वज़ीफ़ा पढ़ सकता है,
अमलियात जितने यक़ीन से करते है उतनी ही तासीर बढ़ जाती है, इसलिए उस के फ़ायदाः को बढ़ा चढ़ा कर बयांन किया जाता है, यहाँ भी ऐसा ही हुवा है.
असल रोज़ी की बरकत और वुस'अत के लिए वही आमाल है जो क़ुरआन व हदीस से साबित है, मसलन तक़वा याने तमाम गुनाहों से बचना, ५ वक़्त की नमाज़ का एहतमाम, माँ बाप और रिश्तेदारों के साथ जोड़ और अच्छा सुलूक, उमराह इस्तिगफार की कसरत, वगैरह आमाल का एहतमाम इस से भी बेहतर है.
📗 रिज़्क़ की कुंजियाँ से माखूज़.
و الله اعلم بالصواب
✍🏻मुफ़्ती इमरान इस्माइल मेमन
🕌उस्ताज़े दारुल उलूम रामपुरा, सूरत, गुजरात, इंडिया.
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