Sunday, September 23, 2018

दो मरदों के आपस में तअल्लुक़ इस्लाम की नज़र में

*दो मरदों के आपस में तअल्लुक़ इस्लाम की नज़र में*

⭕आज का सवाल नंबर १४९३⭕

लवातात (गे मर्द का मर्द के साथ बुरा काम करना) दीन इस्लाम की नज़र में कैसा है ?
दोनो की आपस में रज़ामंदी हो तो जाइज़ है ?
अगर जाइज़ नहीं तो उस पर कया सजा इस्लामी हुकूमत में देनी चाहिए ?

🔵जवाब🔵

حامدا و مصلیا و مسلما
दीने इस्लाम में लवातात-गे को इन्तिहाई नापसन्दीदा और बहुत ही बुरा और सख्त हराम काम समझा है।
इस का अंदाज़ह इस से किया जा सकता है के अल्लाह तआला ने सदूमी-गे की शकल देखना भी पसंद नहीं फ़रमाया है।

एक हदीसे पाक में इरशाद फ़रमाया गया है के जब किसी को क़ौमे लूत का अमल (सजातीय सम्बन्ध) करता पाओ तो करने वाले और कराने वाले दोनों को क़त्ल कर दो।

📘तिर्मिज़ी शरीफ

इस हदीस की बुन्याद पर फुक़्हा (मसाइल के माहिरीन उलामा) का इस पर इत्तिफ़ा -एक राय है के दोनों को क़त्ल कर दिया जाये। लेकिन किस तरह क़त्ल किया जाये उस के तरीके में चंद क़ौल है।

ईमामअबू हनीफ़ा और हाकिम  रहमतुल्लाही अलैहिमा फ़रमाते है के ज़िना की सजा शरीअत में मुतय्यन है लेकिन सदुमी-गे की सजा मुतय्यन नहीं।
इसलिए ज़यादा सख्त और बहुत ही दर्दनाक सजा दी जाये, चाहे पहाड से फेंक दिया जाए, चाहे हाथी के नीचे डालकर कुचलवा दिया जाये, चाहे ज़िंदा जला दिया जाए।

हज़रत अबू बकर रदियल्लाहु अन्हु ने हज़रात अली रदियल्लाहु अन्हु के मशवरे से एक सदुमी-गे को आग में ज़िन्दा जलाने का हुक्म दिया था।
और खालिद इब्ने वलिद रदियल्लाहु अन्हु ने सजा जारी की थी।
सहाबा रदियल्लाहु अन्हुम की एक जमात का यही क़ौल है के सदुमी-गे की सजा ज़िना से सख्त होनी चहिये।

सहाबा रदियल्लाहु अन्हुम की दूसरी जमात का ये क़ौल है के जो सजा ज़िना की है वोही सदुमी-गे की होनी चाहिए यानि गैर शादी शुदा हो तो सब के सामने १०० कोडे-फटके मारे जाये और शादी शुदा हो तो सब से सामने पथ्थर मार मार कर मौत के घाट उतार दिया जाए।

मालूम हुवा के लवातात-समलिंग का गुनाह क़त्ल से भी सख्त है क्यूँ के क़ातिल की सजा उसे क़त्ल करना है। लेकिन मक़तूल-जिसे क़त्ल किया गया था उस का वारिस क़ातिल को बचा सकता है। सो ऊंट की क़ीमत पर सुलह कर सकता है, लेकिन सदुमी-गे को बचाने की कोई सुरत नहीं।

📗हया और पाक दामनी सफा २५१ हज़रत पीर ज़ुल्फ़िक़ार नक़्शे बंदि दा. ब्. की किताब
و الله اعلم بالصواب

*🌙इस्लामी तारिख* : १२ मुहर्रमुल हराम १४४० हिजरी

🗓 *इस्लामी तारिख* : १० मुहर्रमुल हराम १४४० हिजरी

✍🏻मुफ़्ती इमरान इस्माइल मेमन
🕌उस्ताज़े दारुल उलूम रामपुरा, सूरत, गुजरात, इंडिया.

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