🗓 *नए साल और नए चाँद के वज़ाईफ़*🌙
⭕आज का सवाल नंबर १४८१⭕
१. इस्लामि नया साल शुरू हो उस दिन पूरी बिस्मिल्लाह ७८६ मर्तबा या ११३ मर्तबा लिख कर रखने से रोज़ी में बरक़त होती है। ???
२. सूरह ए फातिहा चार बार पढ़कर अपने ऊपर दम करने से पूरे साल बला और मुसीबत क़रीब नहीं आती। ???
कया यह दोनों और ईसी तरह के दूसरे वज़ाईफ़ जो साल की शुरुआत और ख़त्म पर पढ़े जाते हैं यह वज़ीफ़े पढ़ सकते हैं ? ?
🔵जवाब🔵
حامدا و مصلیا و مسلما
साल की इब्तिदा और इन्तिहा में जित्ने भी वज़ाईफ़ मशहूर हैं वह किसी भी मोअतबर सहीह या ज़ईफ़ हदीस की किताब से साबित नहीं, ना उसकी तरग़ीब सहाबा रदियल्लाहु अन्हुम ने दी, ना ताबीइन वा तबे ताबिईन, ना चारों इमाम रहमतुल्लाही अलैहिम ने दी, ना उन्होंने इसका म'अमूल बनाया, लिहाज़ा ऐसे वज़ाईफ़ की तहक़ीक़ कर के अमल करना चहिये।
बिस्मिल्लाह क़ुरान की आयत है, और सुरह ए फातिहा और बिस्मिल्लाह के फ़ज़ाइल और बरक़तों का आम सुबूत मिलता है, और यह अमलियत और वज़ीफ़े के काबील से है जिसका ताल्लुक तजरबे और यक़ींन से है। लिहाज़ा उसे पढ़ सकते हैं।
📗जवाहिरूल फ़िक़ह २/१८७
*लेकिन क़ुरान हदीस से यही वज़ीफाह ईसी तरह पढ़ना साबित नहीं, लिहाज़ा मस्नून समझ कर न पढ़ना चाहिए। और इस को बहुत ज़ियादह अहमिययत न देनी चाहिये, न इस की ज़ियादह दावत चलानी चाहिए, न उस का ज़ियादह एहतेमाम करना चाहिए, रोज़ी की बरक़त के लिए मुसीबत से हिफाज़त के लिए असल तो क़ुरान व हदीस से बराहे रास्त (डायरेक्ट) साबित आमाल हैं, उसका एहतेमाम करना चाहिए, उम्मत अल्लाह और रसूल सलल्लाहु अलय्हि वसल्लम के बतलाये आमाल को वह एहतेमाम और चर्चा नहीं जो गैर मस्नून आमाल का करती है। यह क़ाबिले इस्लाह मिजाज़ है।*
📗तंबीहात सफा ५
हज़रत मुफ़्ती अब्दुल बाकी आखुन ज़दह की किताब से माखूज।
و الله اعلم بالصواب
✒तस्दीक़ मुफ़्ती जुनैद मुम्बई
*_👉🏻नोट: रोज़ी की बरकत के लिए क़ुरान हदीस से जो आमाल साबित हैं जिनका एहतेमाम करना चाहिए उसे कल के मैसेज में पैश किया जायेगा اِ نْ شَآ ءَ اللّهُ_*
🌙 *इस्लामी तारिख* : १ मुहर्रम १४४० हिजरी
✍🏻मुफ़्ती इमरान इस्माइल मेमन
🕌उस्ताज़े दारुल उलूम रामपुरा, सूरत, गुजरात, इंडिया.
📲https://aajkasawal.page.tl/
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