*रूह (आत्मा/ सोल्स) का दुनिया में आना*
⭕आज का सवाल न.१२३३⭕
मरने के बाद रूह -आत्मा भटकती है और कभी दूसरे के जिस्म में आ जाती है यह अक़ीदह कैसा है ?
🔵जवाब🔵
حامدا و مصلیا و مسلما
मरने के बाद अगर मैय्यत नेक है तो उसकी रूह इल्लियीन में (जन्नत की वह जगह जहां नेक रूह जमा होती हैं) पहुंचा दी जाती है और अगर मैय्यत बुरे आदमी की है तो उसकी रूह सिज्जीन में (जहन्नम की वह जगह जहां बुरी रूह रहती हैं) पहुंचा दी जाती है, अगर शहीद की रूह है तो वह परिंदों के पोतों में जन्नत में रहती है
📘फतवा महमूदियाः १/५९४
📗बहवला कितबुर रूह
इस्लाम आवागमन (एक जिस्म की रूह का दूसरे जिस्म में समा जाने) को नहीं मानता. यह अक़ीदह गैर इस्लामी है. बाज़ वाक़िआत से यह बात मालूम होती है के फूलान की आत्मा फूलान में घुस गयी तो वह आत्मा नहीं जिन्नात होते हैं, अल्लाह ने उनको दूसरों के जिस्म में दाखिल होने की और रूप (भेस) बदलने की ताक़त दी है, जानवर में से जिसकी शकल चाहे बना सकते हैं. कोई भी मरने वाले को फ़रिश्ते जन्नत में ले जाते हैं या जहन्नम में, यह इस्लाम का अटल फैसला है, और फ़रिश्ते अल्लाह की ऐसी मख्लूक़ हैं जो ज़र्राह बराबर ना फ़रमानी नहीं करती है, उनको जो कहा जाये वही करती है
सूरह ए तहरीम आयत न.६
उनसे कोई भी रूह छूट कर वापस दुनिया में नहीं आ सकती है, बुरी रूह को फ़रिश्ते छोड़ते नहीं है, अच्छी रूह दोबारह बदबूदार दुनिया में आना नहीं चाहती,
रही बात अपने रिश्तेदारों का हाल मालूम करना तो जो नेक रिश्तेदार बाद में मरते हैं वह पहले मरे हुवे नेक लोगों को उनके रिश्तेदार के हालात सुना देते हैं, लिहाज़ा यह मानना के गुज़रे हुवे लोगों की रूह दुनिया में आती है और सताती है ये गलत है
📗फतवा बिस्मिल्लाह २/३१८.
و الله اعلم بالصواب
✍🏻मुफ़्ती इमरान इस्माइल मेमन
🕌उस्ताज़े दारुल उलूम रामपुरा, सूरत, गुजरात, इंडिया.
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