*शव्वाल के ६ रोज़े मकरूह नहीं & फ़ज़ीलत*
⭕आज का सवाल नंबर.१०५७⭕
हज़रत मौलाना ज़ारवली खान साहेब पाकिस्तानी दा.ब. के बयान और उन के नाम की इमेज में हनफ़ी बड़ी किताबों के हवालों से ये साबित किया गया है शश के रोज़े रखना मकरूह है, हम हर साल रखतें है, हमें क्या करना चाहिए ? रखे या छोड़ दे ? इस रोज़े की फ़ज़ीलत सहीह हदीस से क्या साबित है ?
🔵जवाब🔵
हज़रत मौलाना ज़ार वली खान साहेब पाकिस्तानी दा.ब. की तमाम दलीलों का इत्मीनान बख्श जवाब हज़रत मुफ़्ती तक़ी उस्मानी दा.ब. की
📗दरसे तिर्मिज़ी जिल्द २ में सफा ५९९,५६० में
और
📘फतवा दारुल उलूम ज़करिया जिल्द ३/सफा ३१४ से ३१८.
हज़रत मुफ़्ती रजाउल हक़ मुफ़्ती व शैखुल हदीस दारुल उलूम ज़करिया जुनूबी अफ्रीका की उसमे मुन्दर्जा ए ज़ैल हवालों से उन रोज़ों का मुस्तहब होना मव्जूद है.
📕शरहुँनव्वी अला सहीहुल मुस्लिम १/३६९
📙बहरूर राइक २/२५८ फकीहून नफ़्स अल्लामा इब्ने नुज़ैम हनफ़ी की
📔तहरीरुल अक़वाल फि सौमिससिट्टे मिन शव्वाल
ये कराहियत के जवाब में मुस्तक़िल रिसाला अल्लामा क़ासिम कुतलूबगा का है.
📒रद्दुल मुहतर-शामी २/१२५
वगैरा वगैरा
दरसे तिर्मिज़ी के हाशिए में और भी कई नाम है.
👉हज़. मुफ़्ती ज़ारवली दा.ब. का बयान किया हुवा इख्तिलाफ और उस का जवाब तफ्सील के साथ पढ़ने के
लिए किसी को उस की इमेज व्हाट्सप्प पर चाहिए तो
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पर एक एसएमएस कर के मंगवा सकते हो.
इन रोज़ों की फ़ज़ीलत के बारे में हुज़ूर सलल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया: जिस ने रमजान के रोज़े रखे और फिर ईद के बाद छे (६) रोज़े रखे तो उस ने गोया हमेशा (पूरी ज़िन्दगी) के रोज़े रखे (हर साल की पाबन्दी हो तो)
📚तिर्मिज़ी शरीफ
📚मुस्लिम शरीफ
यानि अल्लाह ताला के यहाँ हर नेकी का सवाब दस गुना दिया जाता है रमजान के एक महीने के रोज़े दस (१०) महीनों के बराबर होंगे बाक़ी बचे दो महीने (इस्लामी साल ३६० दिन का होता है) तो ये रोज़े का सवाब दस गुना यानि ६० रोज़े के बराबर हो गया, इस तरह एक साल के बराबर सवाब मिलेगा और हर साल पाबन्दी से रखे तो वह शरीअत की निगाह में ‘’साईमुदडहर‘’ यानि पूरी ज़िदगी रोज़े रखनेवाला है.
शव्वाल के पुरे महीने में कभी भी ये ६ रोज़े रख सकते है अलग अलग कर के रखना बेहतर और एक साथ भी जाइज़ है.
📓दरसे तिर्मिज़ी २/५८७ से माखूज़
واللہ اعلم
✏मुफ़्ती इमरान इस्माइल मेमन हनफ़ी गुफिर लहू
🕌उस्ताज़े दारुल उलूम रामपुरा सूरत गुजरात इंडिया
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