*उम्मीदवार बनने का शौक*
⭕ आज का सवाल नं. ११७६ ⭕
आजकल लोगो को उम्मीदवार बनने का और उसकी टिकिट लेने का शौक पैदा हो गया है, शरीअत में उम्मीदवार की क्या हैसियत है..? और उसकी जिम्मेदारी कहाँ तक की है..?
🔵 जवाब 🔵
حامدا و مصلیا و مسلما
मुफ्तीए आजम हज़रत मुफ्ती मुहंमद शफी साहब रहमतुल्लही अलयही लिखते है के किसी पार्टी के मेम्बर के चुनाव वोटिंग के लिये जो उम्मीदवार की हैसियत से खड़ा हो वोह पूरी मील्लत के सामने दो चीजो का दावा करनेवाला है,
एक यह के वोह इस काम की अहलीयत रखता है जिसका उम्मीदवार है.
दूसरा यह के वोह सच्चाई और अमानतदारी से उस काम को अंजाम देगा.
अब अगर वाकेई में अपने इस दावे में सच्चा है यानी काबिलियत भी रखता है और कौम की खिदमत के जज्बे से इस मैदान में आया है तो इसका येह अमल किसी हद तक दुरुस्त है, लेकिन बेहतर तरीका उसका येह है के कोई शख्स खुद दावेदार बनकर खड़ा न हो, बल्कि मुसलमानो की एक जमात उसको इस काम का अहल समझकर उसे नामजद/तय करदे, खुद ओहदा माँगने में अल्लाह की मदद हट जाती है.
और जिस शख्स में इस काम की अहलीयत सलाहियत ही नहीँ है वोह अगर उम्मीदवार बन खड़ा हो तो कौम का गद्दार और खयानत करनेवाला है, उसका वोटिंग में कामयाब होना मुल्क व मील्लत की खराबी का सबब तो बाद में बनेगा पहेले वोह खुद गद्दार और खयानत का मुजरिम हो कर अझाबे जहाँ का मुस्तहीक बन जायेगा. अब हर वोह शख्स जो किसी पार्टी की मेम्बरी के लिये खड़ा होता है अगर उसको कूछ आखीरत की भी फिक्र है तो इस मैदान में आने से पहेले खुद अपना जायझा ले ले उर येह समझ ले के इस मेम्बरी से पहेली तो उसकी जिम्मेदारी सिर्फ अपनी जात और अपने अहलो अयाल ही तक महदूद थी, क्युँकि हदीस में है अपने अहलो अयाल का जिम्मेदार है और अमीर अपनी पूरी कौम का जिम्मेदार है.
अब किसी पार्टी की मेम्बरी के बाद अल्लाह की जितनी मख्लूक का ताअल्लुक़ उस पार्टी से वाबस्ता है ऊन सबकी जिम्मेदारी का बोज उसकी गरदन पर आता है और उसे दुनिया और आखीरत में उस जिम्मेदारी के बारे में सवाल किया जयेगा और हिसाब लिया जायेगा, लिहाजा उम्मीदवार बनना एक बहोत बड़ी जिम्मेदारी है जिसका सहीह से निभाना वाजिब है, इसलिये येह शौक की चीज़ नहीँ बल्की डरने की और दुर भागने की चीज़ है.
📗 जवाहिरुल फीकह २/२९१
و الله اعلم بالصواب
📝 *मुफ्ती इमरान इस्माईल मेमन, हनफी, चीस्ती*
🕌 उस्तादे दारुल ऊलूम, रामपूरा, सूरत, गुजरात, भारत.
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