Friday, November 23, 2018

मीलाद् की नियाज़ खाने का हुक्म


*मीलाद् की नियाज़ खाने का हुक्म*

⭕आज का सवाल नम्बर १५५४⭕

ईद ए मीलादुननबी ﷺ  की नियाज़ खाना कौन सी सूरत में जायज़ और कौन सी सूरत में नाजायज़ है ?

🔵जवाब🔵

حامدا و مصلیا و مسلما

ईद ए मीलादुननबी ﷺ  की  ताईंन १२ ही तारिख तय करने के  साथ खाना  पकाना (लोगों को जमा करना) वग़ैरह ग़ुमराह करने वाली बिदअत है, उस से बचना ज़रूरी है, और अगर खाने  में निय्यत इसाले सवाब  की है तो  खाना मुबाह (न सवाब, न गुनाह)  और  सदक़ह है।

ओर  अगर  अकाबीरीन  के  नाम  पर  है (उन को राज़ी करने की, उन से क़रीब होने की निय्यत हो, अल्लाह के नाम पर न हुवा) गैरुल्लाह के नाम पर ज़बह करने की सूरत में दाखिल  होने की  वजह  से हराम है,  और  ऐसे  अक़ाइद  फ़ासिद  और  कुफ़्र  के  बाइस  है।

*( जाईज़ सूरत)👇🏻*

इसाले  सवाब अगर  दिन और  खास खाने  को तय किये बगैर सिर्फ अल्लाह को राज़ी करने के लिए हो तो मुस्तहब है, इसाले सवाब का खाना सिर्फ गरीब खाये, मालदार को खाना मना है।

📘मलफ़ूज़ात जिल्द ३ से माखूज़ (मौलाना अहमद रज़ा साहब बरेलवी)

अगर  दिन  और  खाने  को खास करने के  साथ हो तो  बिदअत है।

📗फतवा  रशीदिया /१३८
📘फ़तवा महमूदिया १५/४२९

ऐसे  मौक़ों  में इस तरह  के  खाने  पकाने  का  शरीअत में  कोई सुबुत नही, लिहाज़ा  ये काम  नाजाइज़  और  बिदअत  है, अगर  महज़  रसम  के  तोर  पर  पकाया  जाए,  सवाब  का  अक़ीदा  न  हो  तो  भी  उसमें  बिदअत  की  ताईद-होंसला अफजाई और रिवाज देना है, लिहाज़ा  उस से बचना लाज़िम है,  उसी  बिना पर  खाना  क़ुबूल  करने  से  भी  बचना  चहिये, इसके  बावुजूद ये  हराम  नहीं है।

📔अहसनुल फ़तवा १/३७५
(शैखुल हदीस मौलाना अहमद राहील सब दा. ब. मद्रसह कंजे मरगूब पाटन)

* जवाज़ पर अकाबीरीन इबरत से दलील पकड़ने का जवाब*
शाह अब्दुर रहीम दहेलवी रहमतुल्लाहि अलय्हि फरमाते है के :
मे विलादत के दिनों में हुज़ूर  ﷺ   को इसाले सवाब पहोंचने की निय्यत से खाना पक्वता था। एक बार ऐसा हुवा के मेरे पास कुछ न था के में खाना पक्वाता, भुने हुवे चनो के अलवाह, तो मेने उसी को लोगों में तक़सीम कर दिया।

इन जैसे बुज़ुर्गों की इबारतों में न विलादत की हद से ज़यादा रौशनी का तज़किराह है, न खाने के लिए लोगों का जमा करने का ज़िक्र (न १२ तारिख का ज़िक्र है, बलके लिखा है मवलूद यानि विलादत के दिनों में, ना जबरदस्ती का चंदा है, न शरीक न होने वालों को हक़ीर समझना है, न मंडप था, न रास्ता बांध कर के आने जाने वालों को तकलीफ पहुंचना है) लिहाज़ा इस से दलील पकड़ना सहीह नही।

📙(फतवा राशिदिययह १३७)

و اللہ اعلم بالصواب

🌙🗓 *इस्लामी तारीख़*
१२ रबीउल अव्वल १४४० हिजरी

✍🏻मुफ़्ती इमरान इस्माइल मेमन
🕌उस्ताज़े दारुल उलूम रामपुरा, सूरत, गुजरात, इंडिया.

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