*मैय्यत को एक शहर से दूसरे शहर ले जाना*
⭕आज का सवाल नंबर १५४०⭕
कीसी ने वसिय्यत की हो के मेरे मरने के बाद फूलां शहर या फूलां गांव में मुझे दफ़न करना।
तो वारिसों के हक़ में उस वसिय्यत को पूरा करना ज़रूरी है?
वारिस उस वसिय्यत को पूरा न करे तो गुनेहगार है?
🔵जवाब🔵
حامدا و مصلیا و مسلما
जहां आदमी का इन्तिक़ाल हो वहीँ पर दफनाना आवला, अफ़ज़ल और मुस्तहब है। किसी माक़ूल-अक़ल में आने वाले उज़्र से किसी दूसरे शहर मुन्तक़िल करे तो उस की भी गुंजाईश है, बाशर्ते की ज़यादा ताख़ीर न हो।
एसी वसिय्यत को पूरा करना ज़रूरी नहीं। लिहाज़ा वारिस उस वसिय्यत को पूरा न करे तो गुनेहगार नहीं।
📘आलमगीरी १/१६८
📕दुर्रे मुख़्तार ३/१३८
मखसूस जगह दफ़न करना, किसी से नमाज़ पढ़वाना ऐसी वसिय्यत का वारिस इस क़दर एहतेमाम करते है के बाज़ अवक़ात शरई वाजिबात की भी खिलाफ वर्ज़ी हो जाती है।
याद रखिये शरई ऐतिबार से ऐसी वसिय्यतें लाज़िम-ज़रूरी नहीं होती अगर कोई बात ख़िलाफ़े शरीअत लाजिम न आये तो उस पर अमल जाइज़ वरना जाइज़ नहीं।
📗अहकामे मैयियत सफा १८९
و الله اعلم بالصواب
🌙🗓 *इस्लामी तारीख़*
२९ सफर उल मुज़फ्फर १४४० हिजरी
✍🏻मुफ़्ती इमरान इस्माइल मेमन
🕌उस्ताज़े दारुल उलूम रामपुरा, सूरत, गुजरात, इंडिया.
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