Friday, June 8, 2018

खत्मे क़ुरआन पर तरावीह पढाने वालों को हदिया देना*

*खत्मे क़ुरआन पर तरावीह पढाने वालों को हदिया देना*

⭕आज का सवाल नंबर १३८१⭕

खत्मे कुरान पर तरावीह पढ़नेवाले हाफिज को ख़ुशी से हदिया देना कैसा है ? हाफिज साहब ने तरावीह पढ़ाने से पहले लेने की कोई शर्त नहीं लगायी थी.

🔵जवाब🔵

حامدا و مصلیا و مسلما
हदिया के नाम से तरावीह का इंतिज़ाम करने वालों (ट्रस्टीज) की जानिब से जो कुछ भी दिया जाता है अगरचे ख़ुशी से और बिला शर्त हो तो भी जाइज़ नहीं.

क्यों के फ़िक़ह का काईदह المعروف کالمشروط अल मारूफ कल मशरूत
जो चीज़ रिवाज में हो जिस का धरा और उसूल चल रहा हो वह बिला तय किये भी शर्त के हुक्म में हो जाती है,
लिहाज़ा ऐसे हाड़िये का लेना और देना नस्से कटई (कुरान से हराम) है।

*و لا تشترو بآیات ثمنا قلیلا*
*हक़ीर कीमतों के बदले मेरी आयत को मत बेच डालो*

📗सुरह बक़रह आयत ४१

अल्बत्ताह इमाम को इमामत की उजरत के साथ तरावीह पढ़ाने का इज़ाफ़ा देना जाइज़ है, बा'ज चीज़ असलान न-जाइज़ होती है, लेकिन ज़िमनन यानि किसी जाइज़ चीज़ के ताबेअ होकर वह भी जाइज़ हो जाती है.
📗 फतवा महमूदियाः १७/७५ का खुलासा
📘फतवा रशीदीयाः क़दीम ३९२ जदीद १४३
📙अज़ीज़ुल फतवा ६६३
📕किफ़ायतुल मुफ़्ती ३/३६३
📚किताबं नवाज़िल सफा ४२२ से ५७७ तक
१५५ सफे में कई फतवा और बहस है, और जवाज़ के हर हिले और हर फतवे जो आज कल चल रहे हैं उसका जवाब दिया है, और अकाबीर के ११ मुस्तनद फतवों के हवाले से न-जाइज़ होना ही साबित किया है, जिसको जवाज़ की गलत फेहमी हुयी है वह उसे ज़रूर देखे, जिसको चाहिए पर्सनल चाट पर तलब करे उसकी इमेजेज भेजी जाएगी

🎤हज़रात मुफ़्ती सईद पालनपुरी दा. ब्. शैखुल हदीस दारुल उलूम देवबंद फरमाते है के : तरावीह को ता'अलीम और इमामत पर क़यास कर के उसकी उजरत को जाइज़ क़रार देना सहीह नहीं, क्यों के ता'अलीम और इमामत का बदल नहीं, बगैर उजरत के इन कामों को करने वाले नहीं मिलेंगे, और तरावीह में पूरा कुरान सुनाने वाले बगैर उजरत-हदिये को कोई हाफिज तैयार न हो तो तरावीह अलमतरा से पढ़ी जा सकती है, पूरा कुरान ही सुनना ज़रूरी नहीं, अगर तरावीह का हदिया मुन्तज़िमीं (ट्रस्टी) या कमिटी के हज़रात दे तो जाइज़ नहीं, हाँ अगर मुक़्तदी हज़रात अपनी तरफ से इंनफिरादि तौर पर दे तो जाइज़ बल्कि बेहतर है हमारी ज़िम्मेदारी है

अहकर कहता के उनका एहसान है उन्होंने हमें कुरान जैसी अज़ीम नेअमत पढ़कर सुनाई, लिहाज़ा हर मुक़्तदी को अपनी हैसियत के मुवाफ़िक़ अपनी साˋआदत समझकर नक़द रुपये कवर में पैक कर के देना चहिये, इस तरह हाफिज का इकराम और उस की हौसला अफ़ज़ाई करनी चाहिए.
   اِ نْ شَآ ءَ اللّهُ

و الله اعلم بالصواب

✍🏻मुफ़्ती इमरान इस्माइल मेमन
🕌उस्ताज़े दारुल उलूम रामपुरा, सूरत, गुजरात, इंडिया.

📲💻
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