2⃣0⃣1⃣7⃣NEW YEAR MANANA*
*न्यू यर मनाना*
*نیو یر منانا*
*ન્યૂ યર મનાના*
⭕AAJ KA SAWAL NO.883⭕
New year manana ya manane walon ko un ki lighting aur aatishbaazi ko dekhne jana kesa hai?
2
🔵JAWAB🔵
New year manana ye isaiyon-nasaaraa ka tareeqah hai.huzoor SALALLAHU ALAIHI WASALLAM ka irshad hai,"jis ne jis qaum ki mushabahat-copy-naqal utaree kal qayamat me us ko un hee ke sath uthaya jayega"yani us ka shumaar bhi un hi me hoga.
qazi sanaaullah panipati rahmatullahi alayhi ne maslaa likha hai ke koi shakhs diwali me baahar nikle aur diwali ki (roshni-atishbazi wagairah) ko dekhkar kahe ke kitna achchha tareeqah hai to us ke tamam nek a'amaal barbad ho jayenge. (MAALAA BUDDA MINHOO)
isi tarah new year manane walon ko dekhne jana bhi jaiz nahi kyun ke Huzoor salallahu alayhi wasallam ka irshade mubarak hai ke "jis ne jis qaum ki taadaad ko barhaaya us ka shumar bhi un hee me hoga", lihaza is raat me bahaar roshni aatishbazi dekhne jana,khane pine ki party karna naye saal ki mubarakbadi dena,naye saal ki khushi manana,ek dusre ko gift dena wagairah jitne tareeqah un ke tareeqah hai sab na jaiz aur iman ko barbad karnewale hai ibrat ke liye ek qissa pesh karta hun
NASRANIYON KE TAUR-O-TARIQE PASAND KARNE WALE AALIM KA IBRATNAAK QISSAH
📄hazrat imaam-e-Rabbani maulana rashid Ahmad gangohi rh. ne irshad farmaya :
Kanpur me koi nasraani jo kisi aa'la ohde par tha woh muslaman ho gaya tha, Magar asliyyat chhupa rakhi thi,
Ittefaq se uska tabadla (transfer) kisi dusri jagah ho gaya, usne un molvi sahab ko jisse usne islam ki baaten sikhi thi, apne tabadla se muttale'a kiya (ittela di) aur tamanna ki ke kisi deendaar shakhs ko mujhe den, jisse ilm haasil karta rahun, chunanche molvi sahab ne apne ek shagird ko unke sath kar diya,
Kuchh arse baad ye nasrani (jo musalman ho chuka tha) wo bimar huwa to molvi sahab ke shagird ko kuchh rupiye diye, aur kaha ke jab me mar jaaun aur isaai jab mujhe apne qabrastan me dafan kar aaye to raat ko ja kar mujhe wahan se nikalna aur muslamano ke qabrastan me dafan kar dena,
Chunanche waisa hi huwa, jab molvi sahab ke shagird ne hasbe wailsiyyat jab qabr kholi to dekha ke usme wo nasrani nahin, Albatta wo molvi sahab pade huwe hai, to sakht pareshan (sharminda) huwa ke ye kyaa maazra hai..! Mere ustaad yahaan kaise..!
Aakhir daryaft se malum hua ke maulana sahab nasrani ke toro tariqo ko pasand karte the aur usey achchha jaante the.
📘(Irshadate hazrat gangohi rh. safa 65)
👇🏻👇🏻👇🏻
Mere bhaiyo,
ye molvi sahab sirf gairon ke tariqon ko pasand karte the, us par chalte nahi the, to Allah ne duniya hi me jiska tariqa unko pasand tha uske saath hashr kar diya,
Hum to gairon ke tariqon par chalte hai, balke us par naaz karte hai, to hamara kyaa hashr hoga..!
socho
Aur apni shaklo surat, libaas, rahan sahan, khushi gami me islami tariqon ko laao.
👏🏻Allah hamen taufiq de.
Aamin.
✏IMRAN ISMAIL MEMON UN KI MAGFIRAT KI JAYE
MUDARRISE DARUL ULOOM RAMPURA SURAT GUJRAT INDIA
⭕आज का सवाल नो.883⭕
*नियु यर मनाना*
यदि कोई हमें नये वर्ष की बधाई दें तो क्या हम उस का जवाब दे और क्या हम किसी को बधाई दे सकते ?
🔵जवाब🔵
गैर मुस्लिम को क्रिसमस दिवस (अंग्रेज़ी नव वर्ष), या इस के अलावा उन के अन्य त्यौहारों के अवसरों पर बधाई देना जाइज़ नहीं है, इसी तरह अगर वे इन अवसरों पर हमें बधाई देते हैं तो उन का जवाब देना (मतलब जवाब में उन्हें भी बधाई देना) भी जाइज़ नहीं है, क्योंकि वे ऐसे त्योहार नहीं हैं जो हमारे धर्म में वैध हों, और उन त्योहारों की बधाई का जवाब देने का मतलब उनको मानना और स्वीकार करना है, हालांकि मुसलमान को चाहिए कि वह अपने धर्म और उसकी बातों पर गर्व महसूस करे, दूसरों को इस्लाम की ओर बुलाए और उन्हें अल्लाह का मैसेज पहुचाए।
शैख इब्ने उसैमीन रहिमहुल्लाह से प्रश्न किया गया कि : गैर मुस्लिम को क्रिसमस दिवस की बधाई देने का क्या हुक्म है ? और यदि वे हमें उसकी बधाई दें तो हम उन को कैसे जवाब दें ? और क्या उन समारोहों (पार्टियों) में जाना जाइज़ है जिन्हें वे इस अवसर पर आयोजित करते हैं ? और अगर इंसान ने इन चीज़ों में से कोई चीज़ बिना इच्छा के कर लिया है तो क्या वह दोषी है ? उस ने मात्र सुशीलता के तौर पर या लज्जा में या दुविधा में पड़कर या किसी अन्य कारण से ऐसा किया है ? और क्या इस बारे में उनकी छवि अपनाना जाइज़ है ?
तो शैख ने यह उत्तर दिया कि :
"कुफ्फार (अविश्वासियों) को क्रिसमस दिवस या उनके अन्य धार्मिक त्यौहारों की बधाई देना हराम है, जैसाकि इब्नुल क़ैयिम -रहिमहुल्लाह- ने अपनी किताब (अहकामो अह्लिज़्ज़िम्मा) में लिखते हुये फरमाया है: "कुफ्र के कई प्रतीकों की बधाई देना हराम है, उदाहरण के तौर पर उन्हें उनके त्यौहारों और रोज़े की बधाई देते हुये कहना : आप को त्यौहार की बधाई हो,उन के तेहवार की आतिशबाज़ी देख कर कहे के कितना अच्छा मंज़र लग रहा है या इस त्यौहार से खुश हों इत्यादि, तो ऐसा कहने वाला व्यक्ति कुफ्र से सुरक्षित नहीं रह सकता है उस के नेक आमाल ज़ाये हो जायेंगे
📗(मालबुद्द मिनहु किताबुल कुफ्र अल्लाम्ह क़ाज़ी सनाउल्लाह पानी पति की )
यह हराम चीज़ों में से तो है ही, और यह उसे सलीब (क्रूश) को सज्दा करने की बधाई देने के समान है, बल्कि यह अल्लाह के निकट शराब पीने, हत्या करने, और बेशर्मी आदि करने की बधाई देने से भी बढ़ कर पाप और अल्लाह की नाराज़गी (क्रोध) का कारण है, और बहुत से ऐसे लोग जिन के निकट दीन का कोई महत्व और स्थान नहीं, वे इन बातों में पड़ जाते हैं, और उन्हें अपने इस घिनोने काम का कोई ज्ञान नहीं होता है, अत: जिस आदमी ने किसी बन्दे को अवज्ञा (पाप) या बिद्अत, या कुफ्र की बधाई दी, तो उस ने अल्लाह तआला के क्रोध, उसके आक्रोश और गुस्से को न्योता दिया।" (इब्नुल क़ैयिम रहिमहुल्लाह की बात समाप्त हुई).
गैरमुस्लिमं को उनके धार्मिक त्यौहारों की बधाई देना हराम और इब्नुल क़ैयिम के द्वारा कहे स्तर तक गंभीर इस लिये है कि इस में यह संकेत पाया जाता है कि गैर मुस्लिम लोग कुफ्र की जिन रस्मों पर क़ायम हैं उन्हें वह स्वीकार करता है और उनके लिए उसे पसंद करता है, भले ही वह अपने आप के लिये उस कुफ्र को पसंद न करता हो, किन्तु मुसलमान के लिए हराम है कि वह कुफ्र की रस्मों और प्रतीकों को पसंद करे या दूसरे को उनकी बधाई दे, क्योंकि अल्लाह तआला इस चीज़ को पसंद नहीं करता है, जैसाकि अल्लाह तआला का फरमान है :
"यदि तुम कुफ्र करो तो अल्लाह तुम से बेनियाज़ है, और वह अपने बन्दों के लिए कुफ्र को पसंद नहीं करता और यदि तुम शुक्र करो तो तुम्हारे लिये उसे पसंद करता है।" (सूरतुज़् ज़ुमर : 7).
तथा अल्लाह तआला ने फरमाया :
"आज मैं ने तुम्हारे लिए तुम्हारे धर्म को मुकम्मल कर दिया और तुम पर अपनी नेमतें पूरी कर दीं और तुम्हारे लिए इस्लाम धर्म को पसंद कर लिया।" (सूरतुल माईदा: 3)
तथा उन्हें इसकी बधाई देना हराम है, चाहे वे उस आदमी के काम के अंदर सहयोगी हों या न हों।
और जब वे हमें अपने त्यौहारों की बधाई दें तो हम उन्हें इस पर जवाब नहीं देंगे, क्योंकि ये हमारे त्यौहार नहीं हैं, और इस लिए भी कि ये ऐसे त्यौहार हैं जिन्हें अल्लाह तआला पसंद नहीं करता है, क्योंकि या तो ये उनके धर्म में स्वयं गढ़ लिये गये (अविष्कार कर लिये गये) हैं, और या तो वैध थे लेकिन इस्लाम धर्म के द्वारा खत्म कर दिये गये, जिस के साथ अल्लाह तआला ने मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को सभी इंसानो की ओर भेजा है, और उस धर्म के बारे में फरमाया है :
"जो व्यक्ति इस्लाम के अलावा कोई अन्य धर्म ढूँढ़े तो उसका धर्म कभी स्वीकार नहीं किया जायेगा, और वह ऊपर घाटा उठाने वालों में से होगा।" (सूरत आल-इम्रान: 85).
मुसलमान के लिए इस अवसर पर उनकीे दावत को स्वीकार करना हराम है, इसलिए कि यह उन्हें इसकी बधाई देने से भी अधिक गंभीर है, क्योंकि इस के अंदर उस काम में उनका साथ देना पाया जाता है।
इसी प्रकार मुसलमानों पर इस अवसर पर समारोहों का आयोजन करके, या उपहारों का आदान प्रदान करके, या मिठाईयाँ अथवा खाने की डिश बाँट केे, या काम की छुट्टी करके और ऐसे ही अन्य चीज़ों के द्वारा गैरमुस्लिमं की छवि (समानता) अपनाना हराम है, क्योंकि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का फरमान है :
"जिस ने किसी क़ौम की छवि अपनाई वह उसी में से है।"
शैखुल इस्लाम इब्ने तैमिय्या रहिमहुल्लाह अपनी किताब (इक्तिज़ाउस्सिरातिल मुस्तक़ीम मुख़ालफतो असहाबिल जह़ीम) में फरमाते हैं : "उनके कुछ त्यौहारों में उनकी नक़ल करना इस बात का कारण है कि वे जिस झूठ पर क़ायम हैं उस पर उनके दिल खुशी का आभास करेंगे, और ऐसा भी सम्भव है कि यह उन के अंदर अवसरों से लाभ उठाने और कमज़ोरों को अपमानित करने की आशा पैदा कर दे।" (इब्ने तैमिय्या रहिमहुल्लाह की बात समाप्त हुई)।
जिस आदमी ने भी इन चीज़ों में से कुछ भी कर लिया तो वह पापी (दोषी) है, चाहे उसने सुशीलता के तौर पर ऐसा किया हो, या चापलूसी के तौर पर, या शर्म की वजह से या इनके अलावा किसी अन्य कारण से किया हो, क्योंकि यह अल्लाह के धर्म में पाखण्ड है, तथा गैरमुस्लिम के दिलों को मज़बूत करने और उनके अपने धर्म पर गर्व करने का कारण है।
और अल्लाह ही से दुआ है कि वह मुसलमानों को उन के धर्म के द्वारा इज़्ज़त (सम्मान) प्रदान करे, और उन्हें उस पर कायम रखे, और उन्हें उन के दुश्मनों पर विजयी बनाये, नि:सन्देह अल्लाह सबसे बड़ा है। (मजमूअ़ फतावा शैख इब्ने उसैमीन (3/44)
और अल्लाह तआला ही सबसे ज्यादा जानकारी रखने वाला है।
✅तस्दीक़®मुफ़्ती इमरान इस्माइल मेमन सूरत गुजरात
* نیو ائیر منانا*
⭕ آج کا سوال نمبر ۸۳۳ ⭕
نیو ائیر منانا یا منانے والوں کی روشنیاں اور آتش بازی دیکھنے جانا کیسا ہے؟
.
🔵 جواب 🔵
نیو ائیر منانا یہ عیسائیوں کا طریقہ ہے حضور صلی اللہ علیہ وسلم کا ارشاد ہے جس نے کسی قوم کی مشابہت یعنی نقل کی کل قیامت کے دن ان ہی کے ساتھ اٹھایا جائیگا یعنی اسکا شمار بھی ان ہی لوگوں میں ہوگا
قاضی ثناء اللہ پانی پتی رحمت اللہ علیہ نے مسئلہ لکھا ہے کوئی شخص دیوالی میں باہر نکلے اور دیوالی کی روشن آتش بازی کو دیکھ کر کہے کہ کتنا اچھا طریقہ ہے تو اس کے تمام اعمال برباد ہو گۓ ( مالا بد منہ) اتی طرح نیو ائیر منانے والوں کو دیکھنے جانا بھی جائز نہیں ہے کیونکہ حضور صلی اللہ علیہ وسلم کا ارشاد ہے جس نے جس قوم کی تعداد کو بڑھایا اس کا شمار بھی انہی میں ہوگا لہذا اس رات میں باہر روشن آتش بازی دیکھنے جانا کھانے پینے کی پارٹی کرنا نیے سال کی مبارک باد دینا نیے سال کی خوشی منانا ایک دوسرے کو گفٹ ہدیہ دینا وغیرہ جتنے انکے طریقے ہیں سب ناجائز اور ایمان کو خراب کرنے والے ہیں عبرت کے لئے ایک قصہ پیش خدمت ہے
نصرانیوں کے طور طریقے پسند کرنے والے ایک عالم کا عبرت ناک قصہ..........
➖حضرت امام ربانی مجدد الف ثانی رحمت اللہ علیہ نے ارشاد فرمایا
کانپور میں کوئی نصرانی جو کسی اعلی عہدے پر تھا وہ مسلمان ہو گیا تھا مگر اصلیت چھپا رکھی تھی اتفاق سے اسکا تبادلہ کسی دوسرے الاقے میں ہو گیا اس نے ان مولوی صاحب کو جن سے اس نے اسلام کی باتیں سییکھی تھیں اپنے تبادلے سے مطلع کیا اور تمنا کی کہ کسی دیندار شخص کو مجھے دیں جن سے علم حاصل کرتا رہوں چنانچہ مولوی صاحب نے اپنے ایک شاگرد کو انکے ساتھ کر دیا کچھ عرصے بعد یہ نصرانی جو مسلمان ہو چکا تھا وہ بیمار ہوا تو مولوی صاحب کے شاگرد کو کچھ روپے دۓ اور کہا کہ جب میں مر جاوں اور عیسائی جب مجھے اپنے قبرستان میں دفنا کے آۓ تو رات کو جاکر مجھے وہاں سے نکال کر مسلمانوں کے قبرستان میں دفن کر دینا
چنانچہ ویسے ہی ہوا جب مولوی صاحب کے شاگرد نے حسب وصیت قبر کھولی تو دیکھتا ہے ات میں وہ نصرانی نہیں البتہ اسکے استاد مولوی صاحب پڑے ہوئے ہیں تو سخت پریشان. شرمندہ ہوا کہ یہ کیا ماجرا ہے... میرے استاد یہاں کیسے؟
آخر دریافت سے معلوم ہوا کہ مولوی صاحب نصرانی کے طور طریقے کو پسند کرتے تھے اور اسے اچھا جانتے تھے
📗ارشادات حضرت گنگوہی رحمت اللہ علیہ.. ۶۵..
👇🏼👇🏼👇🏼
میرے بھائیوں یہ مولوی صاحب صرف غیروں کے طریقے کو پسند کرتے تھے اس پر چلتے نہیں تھے اللہ تعالی نے دنیا ہی میں جس کا طریقہ پسند تھا اسکے ساتھ حشر کردیا
ہم تو غیروں کے طریقے پر چلتے ہیں بلکہ اسپر ناز کرتے ہیں تو ہمارا کیا حشر ہوگا
سوچو...........
اور اپنی شکل وصورت لباس رہن سہن خوشی غمی میں اسلامی طریقوں کو لاو
اللہ ہمیں توفیق دے
آمین
📝 Mufti Imran Ismail Memon.
🕌 Ustaze Darul Uloom Rampura, Surat, Gujarat, India.
💻📱
http://www.aajkasawal.page.tl
💻📱
http://www.deeneemalumat.net
📱💻
https://play.google.com/store/apps/details?id=com.islam.group
(Is islamic Group app ko update karte rahe)
2017 ન્યુ ઇયર (New Year) મનાના
⭕ આજ કા સવાલ નંબર.૮૮૩ ⭕
ન્યુ ઇયર મનાના યા મનાનેવાલો કો ઉનકી લાઇટીંગ ઔર આતીશબાઝી કો દેખનેજાના કૈસા હૈ ?
🔵 જવાબ 🔵
ન્યુ ઇયર મનાના યેહ ઇસાઇયો/નસારા કા તરીકા હૈ. હુઝુર ﷺ કા ઇરશાદ હૈ “જીસને જીસ કૌમ કી મુશાબહત/કોપી/નકલ ઉતારી કલ કયામત મેં ઉસકો ઉનહી કે સાથ ઉઠાયા જાયેગા” યાની ઉસકા શુમાર ભી ઉનહી મેં હોગા.
કાઝી સનાઉલ્લાહ પાનીપતી (રહ.) ને મસઅલા લીખા હૈ કે કોઇ શખ્સ દિવાલી મેં બાહર નિકલે ઔર દિવાલી કી રોશની/આતીશબાઝી વગૈરહ કો દેખકર કહે કે કીતના અચ્છા તરીકા હૈ તો ઉસકે તમામ નાક આ'માલ બરબાદ હો જાયેંગે (માલા બુદ્દા મિન્હુ).
ઇસી તરહ ન્યુ ઇયર મનાનેવાલો કો દેખને જાના ભી જાઇઝ નહિં કયુંકી હુઝુર ﷺ કા ઇરશાદે મુબારક હૈ કે “જીસને જીસ કૌમ કી તાદાદ કો બળ્હાયા ઉસકા શુમાર ભી ઉનહી મેં હોગા”. લિહાજા ઇસ રાત મેં બહાર રોશની/આતીશબાઝી દેખને જાના , ખાને પીને કી પાર્ટી કરના, નયે સાલ કી મુબારકબાદી દેના, નયે સાલ કી ખુશી મનાના, એક દુસરે કો ગીફ્ટ દેના વગૈરહ ઉનકે જીતને તરીકે હૈ સબ નાજાઇઝ ઔર ઇમાન કો બરબાદ કરનેવાલા હૈ, ઇબ્રત કે લીયે એક કિસ્સા પેશ કરતા હું.
નસરાનીયો કે તૌર તરીકે પસંદ કરનેવાલે આલીમ કા ઇબ્રતનાક કિસ્સા
📄 હઝરત ઇમામે રબ્બાની મૌલાના રશીદ અહમદ ગંગોહી (રહ.) ને ઇરશાદ ફરમાયાઃ
કાનપુર મેં કોઇ નસરાની જો કીસી ઉંચે હોદ્દે પર થા વોહ મુસલમાન હો ગયા થા, મગર અસલીયત છુપા રખી થી.
ઇત્તિફાક સે ઉસકા તબાદલા (Transfer) કીસી દુસરી જગહ હો ગયા, ઉસને ઉન મૌલ્વી સાહબ કો જીસસે ઉસને ઇસ્લામ કી બાતેં સીખી થી, અપને તબાદલે કી ખબર દી ઔર તમન્ના કી કે કીસી દિનદાર શખ્સ કો મુઝે દેં, જીસસે ઇલ્મ હાસીલ કરતા રહું, ચૂનાંચે મૌલ્વી સાહબ ને અપને એક શાગીર્દ કો ઉનકો સાથ કર દીયા.
કુછ અરસે બાદ યેહ નસરાની (જો મુસલમાન હો ચુકા થા) વોહ બિમાર હુઆ તો મૌલ્વી સાહબ કે શાગીર્દ કો કુછ રૂપયે દીયે, ઔર કહા કે જબ મૈં મર જાઉં ઔર ઇસાઇ મુઝે અપને કબ્રસ્તાન મેં દફન કર આએ તો રાત કો જાકર મુઝે વહાં સે નિકાલના ઔર મુસલમાનો કે કબ્રસ્તાન મેં દફન કર દેના.
ચૂનાંચે વૈસા હી હુઆ, જબ મૌલ્વી સાહબ કે શાગીર્દ ને હસ્બે વસીયત જબ કબર ખોલી તો દેખા કે ઉસમેં વોહ નસરાની નહિં, અલબત્તા વોહ મૌલ્વી સાહબ પડે હુએ હૈ, તો સખ્ત પરેશાન/શર્મિંદા હુઆ કે યેહ કયા માઝરા હૈ..! મેરે ઉસ્તાદ યહાં કૈસે ?
આખીર દરયાફ્ત સે માલુમ હુઆ કે મૌલાના સાહબ નસરાની કે તૌરો તરીકો કો પસંદ કરતે થે ઔર ઉસે અચ્છા જાનતે થે.
📘 (ઇરશાદાતે હઝરત ગંગોહી (રહ.) સફા.૬૫)
👇🏻👇🏻👇🏻
મેરે ભાઇયો,
યેહ મૌલ્વી સાહબ સિર્ફ ગૈરો કો તરીકો કો પસંદ કરતે થે, ઉસપર ચલતે નહિં થે, તો અલ્લાહ ને દુનિયા હી મેં જીસકા તરીકા ઉનકો પસંદ થા ઉસકે સાથ હશ્ર કર દીયા.
હમ તો ગૈરો કે તરકો પર ચલતે હૈ, બલ્કે ઉસપર નાઝ કરતે હૈ, તો હમારા કયા હશ્ર હોગા....!
સોચો
ઔર અપની શકલો સૂરત, લિબાસ, રહન સહન, ખુશી ગમી મે ઇસ્લામી તરીકો કો લાઓ.
👏🏻 અલ્લાહ હમેં તોફીક દે.
આમીન.
✏ ઇમરાન ઇસ્માઇલ મેમણ ઉનકી મગફીરત કી જાએ
મુદર્રીસ દારૂલ ઉલુમ રામપુરા, સુરત, ગુજરાત, ભારત.
No comments:
Post a Comment