2⃣0⃣1⃣9⃣ *न्यू ईयर मनाना*
⭕आज का सवाल नंबर १५९३⭕
न्यू ईयर मनाना या मनाने वालों को उन की लाइटिंग और आतिशबाज़ी को देखने जाना केसा है ?
🔵जवाब🔵
حامدا و مصلیا و مسلما
न्यू ईयर मनाना ये ईसाईयों-नसारा का तरीका है.
हुज़ूर ﷺ का इरशाद है :
*जिसने जिस क़ौम की मुशाबेहत-कॉपी-नक़ल उतारी कल क़यामत में उस को उन ही के साथ उठाया जायेगा*
यानि उस का शुमार भी उन ही में होगा.
क़ाज़ी सनाउल्लाह पानीपती रहमतुल्लाहि अलैहि ने मसला लिखा है के
कोई शख्स दिवाली में बाहर निकले और दिवाली की (रौशनी-आतिशबाज़ी वगैरह) को देखकर कहे के कितना अच्छा तरीका है तो उस के तमाम नेक अमाल बर्बाद हो जायेंगे.
📗माला बुड्ढामिनहु
इसी तरह न्यू ईयर मनाने वालों को देखने जाना भी जाइज़ नहीं, क्यों के हुज़ूर ﷺ का इरशादे मुबारक है के
*जिस ने जिस क़ौम की तादाद को बढ़ाया उस का शुमार भी उन ही में होगा*
लिहाज़ा इस रात में बहार रौशनी आतिशबाज़ी देखने जाना, खाने पिने की पार्टी करना, नए साल की मुबारकबादी देना, साल की ख़ुशी मनाना, दूसरे को गिफ्ट देना, वगैरह जितने तरीके उन के तरीके है सब नाजाइज़ और ईमान को बर्बाद करनेवाले है.
*इबरत के लिए एक क़िस्सा पेश करता हूँ*👇👇👇
*📄नसरानीओ के तौर-तरीके पसंद करने वाले आलिम का इबरतनाक क़िस्साह*📄
हज़रात इमाम-इ-रब्बानी मौलाना रशीद अहमद गंगोही रह. ने इरशाद फ़रमाया :
कानपूर में कोई नसरानी जो किसी आ'ला ओहदे पर था वह मुसलमान हो गया था, मगर असलिय्यत छुपा राखी थी, उसका तबादला (ट्रांसफर) किसी दूसरी जगह हो गया, उसने उन मौलवी साहब को जिससे उसने इस्लाम की बातें सीखी थी अपने तबादला से मुत्तले' किया (इत्तेला दी) और तमन्ना की के किसी दीनदार शख्स को मुझे दें, जिससे इल्म हासिल करता रहूं, चुनांचे मौलवी साहब ने अपने एक शागिर्द को उनके साथ कर दिया, अरसे बाद ये नसरानी (जो मुस्लमान हो चूका था) वो बीमार हुवा तो मौलवी साहब के शागिर्द को कुछ रुपये दिए और कहा के जब में मर जाऊं और ईसाई जब मुझे अपने क़ब्रस्तान में दफ़न कर आये तो रात को जा कर मुझे वहां से निकलना और मुसलमानो के क़ब्रस्तान में दफ़न कर देना, वैसा ही हुवा, जब मौलवी साहब के शागिर्द ने हस्बे वसिय्यत जब क़ब्र खोली तो देखा के उसमे वो नसरानी नहीं अलबत्ता वो मौलवी साहब पड़े हुवे है, तो सख्त परेशां (शर्मिंदा) हुवा के ये क्या माज़रा है..!
मेरे उस्ताद यहां कैसे..!
आखिर दरयाफ्त से मालूम हुआ के मौलाना साहब नसरानी के टोरो तरीक़ो को पसंद करते थे और उसे अच्छा जानते थे.
📘(इर्शादते हज़रात गंगोही रह. सफा ६५)👇🏻👇🏻👇🏻
मेरे भाइयो ये मौलवी साहब सिर्फ गैरों के तरीकों को पसंद करते थे उस पर चलते नहीं थे, तो अल्लाह ने दुनिया ही में जिसका तरीक़ा उनको पसंद था उसके साथ हश्र कर दिया, तो गैरों के तरीकों पर शौक़ से चलते है बल्कि उस पर नाज़ करते है तो हमारा क्या हश्र होगा..!
सोचोऔर अपनी अवलाद भाई बहन दोस्त अहबाब को समझाइये, या कम से कम ये मेसेज भेजकर या पढ़कर सुनकर उन को इन गैरों की ख़ुशी में शिरकत से रोकें
👏🏻अल्लाह हमें तौफ़ीक़ दे.
आमीन.
و الله اعلم بالصواب
🌙🗓 *इस्लामी तारीख़*
२२ रबी उल आखर १४४० हिजरी
✍🏻मुफ़्ती इमरान इस्माइल मेमन
🕌उस्ताज़े दारुल उलूम रामपुरा, सूरत, गुजरात, इंडिया.
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न्यू ईयर मनाना या मनाने वालों को उन की लाइटिंग और आतिशबाज़ी को देखने जाना केसा है ?
🔵जवाब🔵
حامدا و مصلیا و مسلما
न्यू ईयर मनाना ये ईसाईयों-नसारा का तरीका है.
हुज़ूर ﷺ का इरशाद है :
*जिसने जिस क़ौम की मुशाबेहत-कॉपी-नक़ल उतारी कल क़यामत में उस को उन ही के साथ उठाया जायेगा*
यानि उस का शुमार भी उन ही में होगा.
क़ाज़ी सनाउल्लाह पानीपती रहमतुल्लाहि अलैहि ने मसला लिखा है के
कोई शख्स दिवाली में बाहर निकले और दिवाली की (रौशनी-आतिशबाज़ी वगैरह) को देखकर कहे के कितना अच्छा तरीका है तो उस के तमाम नेक अमाल बर्बाद हो जायेंगे.
📗माला बुड्ढामिनहु
इसी तरह न्यू ईयर मनाने वालों को देखने जाना भी जाइज़ नहीं, क्यों के हुज़ूर ﷺ का इरशादे मुबारक है के
*जिस ने जिस क़ौम की तादाद को बढ़ाया उस का शुमार भी उन ही में होगा*
लिहाज़ा इस रात में बहार रौशनी आतिशबाज़ी देखने जाना, खाने पिने की पार्टी करना, नए साल की मुबारकबादी देना, साल की ख़ुशी मनाना, दूसरे को गिफ्ट देना, वगैरह जितने तरीके उन के तरीके है सब नाजाइज़ और ईमान को बर्बाद करनेवाले है.
*इबरत के लिए एक क़िस्सा पेश करता हूँ*👇👇👇
*📄नसरानीओ के तौर-तरीके पसंद करने वाले आलिम का इबरतनाक क़िस्साह*📄
हज़रात इमाम-इ-रब्बानी मौलाना रशीद अहमद गंगोही रह. ने इरशाद फ़रमाया :
कानपूर में कोई नसरानी जो किसी आ'ला ओहदे पर था वह मुसलमान हो गया था, मगर असलिय्यत छुपा राखी थी, उसका तबादला (ट्रांसफर) किसी दूसरी जगह हो गया, उसने उन मौलवी साहब को जिससे उसने इस्लाम की बातें सीखी थी अपने तबादला से मुत्तले' किया (इत्तेला दी) और तमन्ना की के किसी दीनदार शख्स को मुझे दें, जिससे इल्म हासिल करता रहूं, चुनांचे मौलवी साहब ने अपने एक शागिर्द को उनके साथ कर दिया, अरसे बाद ये नसरानी (जो मुस्लमान हो चूका था) वो बीमार हुवा तो मौलवी साहब के शागिर्द को कुछ रुपये दिए और कहा के जब में मर जाऊं और ईसाई जब मुझे अपने क़ब्रस्तान में दफ़न कर आये तो रात को जा कर मुझे वहां से निकलना और मुसलमानो के क़ब्रस्तान में दफ़न कर देना, वैसा ही हुवा, जब मौलवी साहब के शागिर्द ने हस्बे वसिय्यत जब क़ब्र खोली तो देखा के उसमे वो नसरानी नहीं अलबत्ता वो मौलवी साहब पड़े हुवे है, तो सख्त परेशां (शर्मिंदा) हुवा के ये क्या माज़रा है..!
मेरे उस्ताद यहां कैसे..!
आखिर दरयाफ्त से मालूम हुआ के मौलाना साहब नसरानी के टोरो तरीक़ो को पसंद करते थे और उसे अच्छा जानते थे.
📘(इर्शादते हज़रात गंगोही रह. सफा ६५)👇🏻👇🏻👇🏻
मेरे भाइयो ये मौलवी साहब सिर्फ गैरों के तरीकों को पसंद करते थे उस पर चलते नहीं थे, तो अल्लाह ने दुनिया ही में जिसका तरीक़ा उनको पसंद था उसके साथ हश्र कर दिया, तो गैरों के तरीकों पर शौक़ से चलते है बल्कि उस पर नाज़ करते है तो हमारा क्या हश्र होगा..!
सोचोऔर अपनी अवलाद भाई बहन दोस्त अहबाब को समझाइये, या कम से कम ये मेसेज भेजकर या पढ़कर सुनकर उन को इन गैरों की ख़ुशी में शिरकत से रोकें
👏🏻अल्लाह हमें तौफ़ीक़ दे.
आमीन.
و الله اعلم بالصواب
🌙🗓 *इस्लामी तारीख़*
२२ रबी उल आखर १४४० हिजरी
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