Tuesday, November 20, 2018

बाल मुबारक

💐 *बाल मुबारक* 💐

आज का सवाल नंबर १५५२⭕

बाल मुबारक के देखने का क्या हुक्म है ?

जवाब

حامد و مصلیا و مسلما

हदीस शरीफ से साबित है के हुज़ूर ﷺ ने अपने बाल मुबारक सहाबा ​रदियल्लाहु अन्हुम  को तक़सीम फरमाये थे।

फतावा इब्ने तय्मियाह में है हुज़ूर ﷺ ने अपने बाल मुंडवाकर आधे सर के बाल अबू तल्हा रदियालहु अन्हु को दिए और आधे लोगों के दरमियान तक़सीम फ़रमा दिए।

अगर किसी के पास हो तो ताज्जुब की बात नहीं। अगर उसकी सहीह और क़ाबिले एतिमाद सनद (पूरी चैन हो के हम तक किस किस के ज़रिये पहुंचा) हो तो उसकी ताज़ीम (ज़ियारत) करना बहुत बड़ी खुश नसीबी है।

अगर सनद न हो और बनावटी होने का भी यक़ीन न हो तो ख़ामोशी इख़्तियार की जाए, न उसकी तस्दीक़ करे (सच्चा समझे) न तकज़ीब (झुटलाये)। न त'आज़म करे न तौहिन करे।

बाल मुबारक और दूसरे नबवी तबर्रुकात खैरो बरकत को वाजिब करने वाले हैं और उसकी ज़ियारत से अज़रो सवाब मिलता है।

उसे देखने में मर्दो और औरत का मेलाप न हो, हज़रात आयशा रदियल्लाहु अन्हा अपने ज़माने की औरतो के मुताल्लिक़ फ़रमाती हैं के रसूलुल्लाह ﷺ  इस ज़माने की औरतो को देखते तो उनको मस्जिद में जाने से मना फ़रमाते।
लिहाज़ा औरतो को जमा न किया जाए।

(तबर्रुकाते मुबारका को हमारे गुनेहगार हाथ न लगाए जाए। सिर्फ ज़ियारत पर बस किया जाए।)

तब्बर्रूकात से बरकत हासील करने का सहीह और जायज़ तरीका यह है के ख़ास तारीख तय किये बगैर लोगों को जमा करने का एहतिमाम किये बगैर जब दिल चाहे ज़ियारत करे और करवाए।

सहाबा रदी अल्लाहु अन्हुम के ज़माने में दस्तूर था के किसी नज़र वग़ैरह की तकलीफ हो जाती तो उम्मुल मूमिनीन हज़रत उम्मे सलमा रदियल्लाहु अन्हा के पास पानी का पियलाह भेज दिया जाता। आप के पास बाल मुबारक था।उनको चाँदी की नलकी में महफ़ूज़ रखा था, पानी में उस नलकी को दाल देते थे, और वह पानी मरीज़ को पिलाया जाता था।

📗कुस्तलानी शरहे बुखारी जिल्द८, सफ़ा ३८२

हज़रत अस्मा रदियल्लाहु अन्हा के पास हुज़ूर ﷺ का कुरता मुबारक था, फ़रमाती हैं के हम उसे पानी में धो कर वह पानी अपने बिमारों को बागरज़-ए-शिफ़ा मरीज़ को पिला दिया करते हैं।

📘सहीह मुस्लिम २/१९०

📗 फ़तावा रहीमिययह जदीद बाबुल अम्बिया, जिल्द ३, सफा ४० से ४२ का खुलासा उर्दू की आसानी के साथ)

हम एहले सुन्नत वल जमाअत तबर्रुकात से बरकत हासील होने को मानते है, लेकिन उसे सब कुछ न सम्झे।

नजात तो आमाल से होगी, बिला अमल व इत्तिबा ए नबी ﷺ सिर्फ ज़ाहिरी मुहब्बत का ढ़ोंग और मुहब्बत के दावे काफी नहीं।

गैर मुक़ल्लिद (नाम के एहले हदीस) असल वहाबी तब्बर्रूकात से बरक़त हासील करने को नहीं मानते।

अल्लाह हमें सच्ची और कामिल मुहब्बतों इश्क़े रसूल ﷺ नसीब फर्मायें, आमीन।

و الله اعلم بالصواب

🌙🗓 *इस्लामी तारीख़*
११ रबीउल अव्वल १४४० हिजरी

✍🏻मुफ़्ती इमरान इस्माइल मेमन
🕌उस्ताज़े दारुल उलूम रामपुरा, सूरत, गुजरात, इंडिया.

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