Friday, August 2, 2019

जानवरों को ज़बह करना ज़ुल्म न होने की दलीलें

*जानवरों को ज़बह करना ज़ुल्म न होने की दलीलें*

⭕आज का सवाल न. १८१०⭕

क्या जानवरों की क़ुरबानी करना ये उन पर ज़ुल्म है ? गैरों का कहना के इस्लाम का ये तरीका रहम के खिलाफ है ये सहीह है ?

🔵जवाब🔵

حامدا و مصلیا و مسلما

१. अल्लाह जानवरों का मालिक है, मालिक को अपनी मिल्किय्यत में तसर्रुफ़ (जो चाहे वो) करने का इख़्तेयार होता है, किसी दूसरे के फटे हुवे कपडे को फाड़ना भी ज़ुल्म है, लेकिन मालिक अपने बेहतरीन कपडे को अपने काम के लिए फाड़ दे उसे कोई ज़ुल्म नहीं कहता. मुसलमानो को जानवरों के पैदा करनेवाले और मालिक अल्लाह ने क़ुरबानी करने का हुक्म क़ुरान में सूरह कौसर में "क़ुरबानी करो" कहकर दिया है इस लिए क़ुरबानी करते है.

२. क़ुरबानी हर मज़हब में बलिदान, भोग, बली, भेट चढ़ाना वगैरह नाम से मौजूद है.

३. मुर्ग़ी, मछली, ज़िन्गे वगैरह जानदार को दूसरे मज़हब वाले भी मारते और खाते है तो फिर ऐतराज़ मुसलमानो पर ही क्यों ? माछियों से क्यों डरते हो ?

४. सब्ज़ियां, फलों फूलों में भी जान है, उनको भी हवा पानी और रौशनी की ज़रूरत है, साइंस कहता है वो भी जानदार है, जीवदया करने जाओगे तो इसे खाना भी छोड़ना पड़ेगा. छोटे जिव में बर्दाश्त की ताक़त छोटी होती है, बड़े जिव में बर्दाश्त की ताक़त बड़ी होती है, इसलिए तकलीफ पहुंचने में छोटा जिव और बड़ा जिव एक- सेम है, फ़र्क़ करना गलत है

५. इस्लाम मज़हब दुनिया के हर कोने के लिए है, जहाँ सिर्फ बर्फ ही बर्फ और रेगिस्तान ही रेगिस्तान हो, जहाँ सब्जियां नहीं होती, वहां के लोगों को जानवर ज़बह करने से मना किया जाये तो लोग क्या खाएंगे?

६. गोश्त खाना फ़ितरी-प्राकृतिक चीज़ है इस लिए अल्लाह ने इंसान को फाड़ खाने वाले जानवर की तरह उप्पर के २ नुकीले दांत और चबाने के लिए गोल दाढ़ें दी है. सब्ज़ी खानेवाले जानवर को न नुकीले दांत दिए, न गोल दाढ़ें दी, बल्कि सब दांत सीधे और चपटी दाढ़ें दी. लिहाज़ा ये नुकीले तिन्ने दांत और गोल दाढ़ें सब्ज़ी खाने नहीं दी है बल्कि गोश्त खाने दी है.

७. जानवर को ज़बह न करते तो भी वो एक न एक दिन बीमारी में मुब्तला हो कर तड़प तड़प के ज़रूर मरता, वह हमेश नहीं जीता है. ज़बह करने से उसे आसान मौत मिलती है. इसीलिए अपनी समझ में आसान मौत ही के लिए बाज़ इंसान ख़ुदकुशी-आत्महत्या करते है. ता के बीमारी की तकलीफ उठानी न पड़े.

८. जो जानवर बाँझ है, बच्चे नहीं जनते, नहीं देते, और बूढ़े-कमज़ोर हो गए है, उन को घास चारा खिलाने में घास चारा कम होता है, पैसे भी ज़ाएआ होते है. और बेहतर जानवरों के चारे का हक़ कम हो जाता है. या तो बाहर चरने के लिए छोड़ने में प्लास्टिक की थैलियां खाकर मरती है, अक़्ल ये कहती है ऐसे जानवरों को ज़बह कर देना चाहिए, ताके घास चारा अच्छे जानवरों को मिले और उस से उन जानवरों की सिहत व तंदुरस्ती में इज़ाफह हो, और दूध में बढ़ोतरी-ज़ियादती हो. ऐसा करना उन अच्छे जानवर पर रहम है.

९. ज़ुल्म के माने सिर्फ तकलीफ पहुंचना हो तो हर क़ौम को खटमल मच्छर चूहा वगैरह तकलीफ पहुंचने वाले जानवर को सिर्फ भागने की या पकड़ के कहीं छोड़ आने की दवा या मशीन इस्तिमाल करनी चाहिए,  इसके बजाये जान से मार डालते है, इस की मामूली तकलीफ जिस से इंसान की जान का खतरा नहीं, अपनी राहत के लिए मार डालते है, पता ये चला इंसान सब से बेहतर मख्लूक़-जिव है, अपने फायदे के लिए अदना-मामूली मख्लूक़-जिव को मार सकता है.

१०. जानवर का दूध हर क़ौम पीती है, बावजूद इसके के वह उस जानवर के बच्चे का हक़ है, जब ये ज़ुल्म नहीं तो गोश्त खाना कैसे ज़ुल्म होगा!

११.जानवर को अपनी मेहनत की कमाई से लेकर उस की खिदमत कर के फिटरी रहम की वजह से दिल न चाहते हुवे उसे ज़बह करते है, इस में मुस्लमान अपने जज़्बात ''माल से मुहब्बत,  जानवर से मुहब्बत, फिटरी रहम, ये सब रूह और आत्मा की ख़ाहिश की अल्लाह के हुक्म के सामने क़ुरबानी देता है, अंदर के जज़्बात की क़ुरबानी जानवर को ज़बह कर के ज़ाहिर करता है.

१२.जानवर को काटा न जाता तो एक दिन खुद मर के मिटटी में मिल कर बर्बाद हो जाता, हम खाकर उसे अपने जिस्म और दिल में जगा देते है, उस का हिस्सा बना लेते है, ये उन के साथ अच्छा सुलूक है.

और भी बहुत सी दलीलें है, एक दज़न पर बस करता हूँ, इस से साबित हुवा जानवर को ज़बह करना उन पर न ज़ुल्म है न रहम के खिलाफ है.

و الله اعلم بالصواب

*🌙इस्लामी तारीख़*🗓
३०~ज़िलक़दह~१४४०~हिज़री

✍🏻मुफ़्ती इमरान इस्माइल मेमन.
🕌उस्ताज़े दारुल उलूम रामपुरा, सूरत, गुजरात, इंडिया.

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