Saturday, October 13, 2018

असातीजाः (उस्ताद) को तब्लीग और बातिल फ़िरक़ों के रद में जाने की छुट्टी

*असातीजाः (उस्ताद) को तब्लीग और बातिल फ़िरक़ों के रद में जाने की छुट्टी*

⭕आज का सवाल न.१५१२⭕

अरबी मदारिस और मकातिब के असातीजाः (उस्ताद) को तब्लीगी जमा'त में जाने के लिए माहना (मंथली) तीन दिन या सालाना (इयरली) एक चिल्लाह या ज़िन्दगी के चार महीने या एक साल की छुट्टी, इसी तरह बातिल फ़िरक़ों की तरदीद के तरबियती कैम्प की छुट्टी तनखाह के साथ दी जा सकती है या नहीं?

🔵जवाब🔵

حامدا و مصلیا و مسلما
अगर ज़रूरत हो तो दी जा सकती है. ता'अलीम का मक़सूद दीन की इशाअत और हिफाज़त है, आखिर मद्रसह वाले मद्रसह के पैसे से रिसलाह भी निकालते हैं, मद्रसह के पैसे से वाअज़ (बयान) के लिए भी भेजते हैं, जलसों में शिरकत के लिए भी भेजते हैं, यह सब के सब ता'अलीम के मक़ासिद हैं, अगर वहाँ के लोग इस सफर को मुनासिब समझते हैं और उसकी ज़रूरत भी है तो वहाँ (जमा'त, तरबियती कैम्प में तन्खा के साथ छुट्टी) कर सकते हैं.

📘हक़ीक़त ए तब्लीग सफा ११०

हज़रत सैय्यद मुफ़्ती अब्दुर रहीम लाजपुरी रहमतुल्लाह अलैहि लिखते हैं के ; मदारिस वाले मुदर्रिस (उस्ताज़) बढ़ाये. मद्रसह की ईमारत में काफी से ज़ाइद पैसे खर्च कर देते हैं. हाला के मद्रसह की ईमारत मक़सूद बिज़ ज़ात नहीं,  मक़सूद ए असली ता'अलीम है, फिर असातिज़ा के इज़ाफ़े और उनकी तनख्वाहों (सैलरी) के इज़ाफ़े में कोताही क्यों की जाए ?

*खुलासा* यह है के ता'अलीमी काम के साथ तब्लीग में मशगुली भी होनी चाहिए, दीनी अंजुम (कमीटी) तब्लीगी काम की ज़िम्मेदारी से सुबुक दोष (बरी) नहीं हो सकते, लिहाज़ा ता'अलीम के साथ तब्लीग में भी दिलचस्पी लें और मुदर्रिसीन को जारी वज़ीफ़े (तनख्वाह) के साथ तब्लीगी काम के लिए इजाज़त दें.

शैखुल इस्लाम हज़रत मदनी रहमतुल्लाह
अलैहि का मलफ़ूज़ इसी क़िस्म के एक सवाल के जवाब में तहरीर फरमाते हैं के ; मुझ को यह मालूम हुवा है के ब'आज मिम्बराने शूरा को उन मुदर्रिसीन की तनख्वाहों के जारी (चालू) रखने के मुताल्लिक़ ऐतराज और शुबहात हैं. मुसलमानो के इदारे ता'लीमिययह सिर्फ ता'अलीमी खिदमत अंजाम देने के लिए नहीं बनाये गए, बल्कि मुसलमानो की मज़हबी और दीनी और दूसरी ज़रूरी खिदमत भी उनके फ़राइज़ में से हैं. यही वजह है के जंग ए रूम और रूस के ज़माने में हज़रत नानौतवी रहमतुल्लाह अलैहि ने दौरे किये और एक अज़ीमुष शान मिक़्दार चंदे की जमा करके तुर्की को भेजी, उस ज़माने में दारुल उलूम देवबंद में छुट्टी रही. (ता'अलीम बंध रही) और तनख्वाहें दी गई.

शुद्धि और संगठन वगैरह की नहूसट के ज़माने में मालिकना राजपूतों वगैरह इलाक़े में मुदर्रिसीन और उलमा के वुफूद (जमा'तें) भेजी गयी और उनकी तनख्वाहें जारी रखी गयी.

📗फतावा रहीमिया जदीद जिल्द ४ सफा १४५ किताबुल इल्म व उलमा.
و الله اعلم بالصواب

*नोट* : *शकील बिन हनीफ फिरके को जानने और उसके मुक़ाबले के तरीक़ा सीखने तरबियती कैम्प मस्जिदे अनवर, निशात सोसाइटी, सूरत में १४/१०/२०१८ इतवार को सुबह ०९:४५ से ईशा तक रखा गया है, जो हज़रात शिरकत करने चाहते है वो अपना नाम ८४४१४१३५५५ मोबाइल नंबर पर लिखवाए।*

🌙🗓 *इस्लामी तारीख़*
३ सफर १४४० हिजरी
✍🏻मुफ़्ती इमरान इस्माइल मेमन
🕌उस्ताज़े दारुल उलूम रामपुरा, सूरत, गुजरात, इंडिया.

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TABLEEGEE JAMAT AUR FAZAILE AMAL PAR AEATARAZAT KE JAWABAT

Tas’heeh ul Khayal – Tehqeeq ul Maqaal Fi Takhreej Ahadith Fazail e A’maal By Shaykh Lateef ur Rahman Bharaichi

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Tableeghi Jamaat Chand Haqaaiq wa Ghalat Fehmiyan By Shaykh Muhammad Manzoor Nomani (r.a)

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Tableeghi Jamaat Aur Kutub e Fazail – Haqaiq , Ghalat Fehmiyan By Shaykh Mufti Abubakr Jabir Qasmi

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Jamat e Tableegh Per Aiterazaat Kay Jawabaat By Shaykh Hafiz Muhammad Aslam Zahid

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