*क़ुरबानी के बदले सदक़ह*
⭕आज का सवाल न. १८१२⭕
अगर कोई क़ुरबानी न करे उसके बदले क़ीमत सदक़ह कर दे तो दुरुस्त है ? या क़ुरबानी ही ज़रूरी है ?
🔵जवाब🔵
حامدا و مصلیا و مسلما
क़ुरबानी के दिनों में (क़ुरबानी वाजिब हो तो) क़ुरबानी ही ज़रूरी है क़ीमत का सदक़ह काफी नहीं , बाज़ों को जानवर लाने काटने और तक़सीम का बोझ पड़ता है, तो इन कामों पर भी बहुत अजरो सवाब दिया जाता है, अगर ये चीज़ न करनी हो तो छोटे जानवर की क़ीमत देकर उस की क़ुरबानी करने का किसी को भी वकील-ज़िम्मेदार बना सकते है, या बड़े जानवर में हिस्सा ले सकते है, लेकिन क़ुरबानी ही करनी पड़ेगी, उन पैसों से किसी की मदद करने से क़ुरबानी का वाजिब ज़िम्मे से न उतरेगा, और गुनेहगार होगा.
हाँ अगर किसी वजह से उन दिनों में क़ुरबानी नहीं कर पाया और दिन गुज़र गए तो फिर क़ीमत का सदक़ह ज़रूरी है.
📚फतावा महमूदिया जदीद १७/३१० से माखूज
و الله اعلم بالصواب
*🌙इस्लामी तारीख़*🗓
०३~ज़िल हिज्जह~१४४०~हिज़री
✍🏻मुफ़्ती इमरान इस्माइल मेमन.
🕌उस्ताज़े दारुल उलूम रामपुरा, सूरत, गुजरात, इंडिया.
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