Wednesday, January 9, 2019

મુशाबहत का मतलब और इबरतनाक किस्सा

*મુशाबहत का मतलब और इबरतनाक किस्सा*

⭕आज का सवाल नं १६०४⭕

जो किसी कोम की मुशाबहत इख़्तियार करे वो उन्ही में से है, इसका क्या मतलब है ? तफ्सील से बताएं.

🔵जवाब🔵

حامدا و مصلیا و مسلما

हदीस का मतलब ये है के जो शख्स किसी भी गैर कोम - मज़हब वालों की मुशाबहत, नक़्क़ाली और कॉपी उनकी मज़हबी चीजों में उनकी मज़हबी निशानियों, ख़ुशी और गमी में करेगा उसका हश्र यानी क़यामत के दिन उठाया जाना उन्हों के साथ होगा, उसका शुमार भी काफिरों में होगा, यानि उनके लिए अज़ाब और जहन्नम में जाने का फैसला होगा, हश्र का मतलब समझने के अल्लाह ने दुनिया ही में कई वाकियात हमें दिखा दिए जिसमे से एक मोअतबर वाकिया पेश करता हुं.
नसरानियों के तोरो तरीके पसंद करने वाले आलिम का इबरतनाक किस्सा
हज़रत इमामे रब्बानी मौलाना रशीद अहमद गंगोही रह. ने इरशाद फ़रमाया :
कानपूर में कोई नसरानी जो किसी आला ओहदे पर था, वो मुसलमान हो गया था, मगर असलियत छुपा रखी थी, इत्तेफ़ाक़ से उसका तबादला [ट्रांसफर] किसी दूसरी जगह हो गया, उसने उन मोलवी साहब को जिससे उसने इस्लाम की बातें सीखी थी अपने तबादला से मुत्तला किया, [इत्तेला दी], और तमन्ना की के किसी दीनदार शख्स को मुझे दे, जिससे इल्म हासिल करता राहु, चुनाचे मोलवी साहब ने अपने एक शागिर्द को उनके साथ कर दिया,
कुछ अरसे बाद ये नसरानी [जो मुसलमान हो चूका था]  वो बीमार हुवा तो मोलवी साहब के शागिर्द को कुछ रुपये दिए, और कहा के जब में मर जाऊ, और ईसाई जब मुझे अपने कब्रस्तान में दफ़न कराये तो रात को जाकर मुझे वहां से निकाल लेना, और मुसलमानो के कब्रस्तान में दफ़न कर देना,
चुनांचे वैसा ही हुवा, जब मोलवी साहब के शागिर्द ने हस्बे वसिय्यत जब क़ब्र खोली तो देखा के उसमे वो नसरानी नहीं है, अलबत्ता वो मोलवी साहब पड़े हुवे है, तो सख्त परेशान [शर्मिंदा] हुवा के ये क्या माज़रा है..!! मेरे उस्ताद यहाँ कैसे...!!!
आखिर दरयाफ्त से मालूम हुवा के मौलाना साहब नसरानी के तोरो तरीके को पसंद करते थे, और उसे अच्छा जानते थे,
[इरशादाते हज़रत गंगोही रह. सफा ६५]

मेरे भाइयो..!!
ये मोलवी साहब सिर्फ गैरों के तरीकों को पसंद करते थे, उस पर चलते नहीं थे, तो अल्लाह ने दुनिया ही में जिसका तरीक़ा उनको पसंद था उसके साथ हश्र कर दिया,
हम तो गैरो के तरीको पर चलते है..! बल्कि उस पर नाज़ करते है.! और फख्र से मानते है, तो हमारा क्या हश्र होगा..?

सोचो..!!
और अपनी शक्लो सूरत, लिबास, रहन सहन, ख़ुशी गमी में इस्लामी तरीको को लाये और हम गैरों के तेहवार मानाने से बचे. अल्लाह हमें तौफीक दे.

आमीन.

و الله اعلم بالصواب

🌙🗓 *इस्लामी तारीख़*
०३ जमादि उल अव्वल १४४० हिजरी

✍🏻मुफ़्ती इमरान इस्माइल मेमन
🕌उस्ताज़े दारुल उलूम रामपुरा, सूरत, गुजरात, इंडिया.

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